इंडिया न्यूज सेंटर, जालंधर: क्यों आपको पता है कि नवरात्र का इतिहास क्या है और इनकी शुरुआत कहां से हुई। नवरात्र की शुरुआत के बारे में बता रहे हैं प्रसिद्ध वास्तु व ज्योतिष विशेषज्ञ दीपक अरोड़ा।
प्रथम कथा: महिषासुर नामक दैत्य ने भगवान शिव को प्रसन्न कर शक्ति का वरदान प्राप्त किया। बाद में उस वरदान का दुरुपयोग सभी लोकों में विजय प्राप्ति के लिए अत्याचार व हाहाकार मचा दिया। इससे त्रस्त सभी देव, मनुष्य, गंधर्व, त्रिदेवों की शरण में गए। इस समस्या के निदान हेतु त्रिदेव-ब्रह्म, विष्णु, महेश ने अपनी शक्तियों के समायोजन से एक स्त्री शक्ति का अवतरण किया जिसके तेज से महिषासुर सम्मोहित हो विवाह की इच्छा करने लगा लेकिन देवी ने सर्वप्रथम उसे पराजित करने वाले शस्त्र के साथ ही परिणय सूत्र में बंधने की शर्त रखी। देवी और महिषासुर का युद्ध नौ दिन तक चला। नौवें दिन की रात्रि को देवी ने महिषासुर का वध कर दिया। इसलिए नौ रात्रि के संघर्ष को नवरात्र और देवी विजय के दशम दिन को विजयादशमी माना गया। यह उत्तर भारत की प्रसिद्ध नवरात्र इतिहास माना जाता है।
द्वितीय कथा: पूर्व भारत में प्रचलित प्रसिद्ध कथा अनुसार राजा दक्ष हिमालय के राजा थे, जिनकी उमा नाम से नाम से सुंदर और संस्कारी कन्या थी जो अपने बाल्यकाल से ही भगवान शिव को पति रूप में मन से दक्ष मान तो गए। विवाह के समय शिव स्वरूप देख राजा दक्ष ने अपनी पुत्री से सभी संबंध तोड़ दिए। देवी उमा इससे अनभिज्ञ थी। कुछ काल के बाद राजा दक्ष ने यज्ञ का आयोजन कर सभी देवों को बुलाया पर भगवान शिव को न्यौता नहीं भेजा। इससे रुष्ट देवी उमा ने अपने पिता से इसका कारण पूछा पर पिता ने क्रोध में पुत्री और जमाई का अपमान किया। इस घोर अपमान के कारण देवी उमा ने उसी यज्ञ अग्नि में अपनी देह त्याग दी। इसी कारण देवी उमा सती के नाम से प्रसिद्ध हुई। इसी पाप का दंड राजा हिमालय को शिव ने शिव विच्छेद कर दिया। इस संहार के बाद शिव समाधिस्थ हो गए। कालांतर के बाद माता पार्वती के रूप में जन्म ले भगवान शिव का वरण किया। इस शिव पार्वती विवाह से भगवान गणेश और कार्तिक पैदा हुए जो हर साल इन्हीं दिनों में अपने पिता के घर आते थे जिन्हें नवरात्र का नाम दिया गया।
तृतीय कथा: भगवान राम जो विष्णु अवतार थे, ने रावण से युद्ध से पहले देवी का नौ रात्रि नवरूप में आह्वान कर शक्ति के लिए प्रार्थना की, जिसके परिणामस्वरूप रावण को संहार कर दशमी तिथि को विजय प्राप्ति की जिसकारण दशम दिवस को विजयदशमी माना गया। नौ दिनों को नवरात्रि इस शक्ति वंदन और पूजा के कारण भक्तों में देवी शक्तिदायिनी नाम से प्रसिद्ध हुई। हर नवरात्र में साधक देवी से असुर रूपी आतंरिक दोषों से निवृत्ति पाने के लिए देवी से प्रार्थना कर लाभान्वित होते हैं।