इंडिया न्यूज सेंटर, नई दिल्ली: संडे, एक ऐसा दिन जब लोग बिल्कुल रिलेक्स के मूड में होते हैं और इस दिन का इंतजार पूरे हफ्ते बेसब्री से करते हैं। कई जगह शनिवार को आधे दिन काम करना होता है। शुक्रवार से ही लोगों के दिल में उमंग उत्साह की लहर दौडऩे लगती है। सबको रविवार का इंतजार होता है ताकि वे अपने और परिवार के साथ ज्यादा वक्त बिता सकें लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि रविवार ही क्यों छुट्टी का दिन होता है। दरअसल, ये आजादी से पहले की बात है, जब अंग्रेज हम पर राज करते थे। तब कोई छुट्टी या अवकाश की बात सोची भी नहीं जा सकती थी। सोमवार से रविवार तक, दिन से रात तक हर समय बस काम ही करना होता था। ऐसे में मजदूरों के लिए आवाज उठाने वाले नारायण मेघाजी लोखांडे सामने आए और एक दिन छुट्टी का ऐलान किया। हालांकि उनके कहने से कुछ होने वाला नहीं था। उन्होंने अंग्रेजों के सामने ये पेशकश की। वे चाहते थे कि मजदूरों को एक दिन की छुट्टी मिलनी चाहिए ताकि वे आराम कर सकें और काम पर जब लौटें तो थके हुए न हों पर अंग्रेज नहीं माने। लोखंडे भी अपने प्रयास करते रहे। उनके निरंतर प्रयासों के मद्देनजर अंग्रेजों ने रविवार का दिन छुट्टी के लिए चुन लिया, क्योंकि अंग्रेज रविवार को ही चर्च जाया करते थे। इसलिए सात साल के संघर्ष के बाद आखिरकार अंग्रेजों ने इस पर मुहर लगाई और आज तक वही परंपरा चलती आ रही है, लेकिन मुस्लिम देशों में ऐसा नहीं होता, वहां शुक्रवार को ही छुट्टी मनाई जाती है।