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न्यूज़ डेस्क नई दिल्ली : 'तुम मुझे खून दो और मैं तुम्हें आजादी दूंगा' के नारे से अंग्रेसजी हुकूमत की जड़ों को हिला देने वाले नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आज पुण्यतिथि है। उनकी मौत आज भी एक रहस्य बनकर लोगों के लिए सवाल बनी हुई है। मृत्यु के 75 वर्ष बाद भी उनकी अस्थियां भारत नहीं लाई जा सकी हैं।
लंदन में रहने वाले लेखक आशीष रे का कहना है कि यह एक अकथनीय त्रासदी है कि वैसे तो नेताजी सुभाष चंद्र बोस भारत में व्यापक रूप से पूजनीय हैं, मगर उनकी मृत्यु के 75 वर्ष बाद भी उनकी अस्थियां भारत नहीं लाई जा सकी हैं। रे 'लेड टू रेस्ट : द कंट्रोवर्सी ओवर सुभास चंद्र बोस डेथ' किताब के लेखक हैं। वह नेताजी के जीवन और उनकी मौत से जुड़े रहस्यों के बारे में जानकारी एकत्र करते रहते हैं। नेताजी की अस्थियां टोक्यो के रेंकोजी मंदिर में संरक्षित है। आशीष रे ने कहा कि भारत में नेताजी सुभाष चंद्र बोस के परिवार और विषय से अनभिज्ञ लोगों ने पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पी. वी. नरसिम्हा राव को ऐसा करने से रोका, जो कि नेताजी के अवशेषों को भारत वापस लाना चाहते थे।
रे ने कहा कि भारतीय खुफिया एजेंसियों द्वारा यह डर दिखाने के बाद कि इससे कोलकाता में दंगे हो सकते हैं, यह भी एक कारण रहा है कि विभिन्न सरकारें उनके अवशेषों को वापस लाने की हिम्मत नहीं कर पाई हैं। उन्होंने खुलासा किया कि जापानी सरकार ने संकेत दिया है कि अगर भारत सरकार अनुरोध करती है, तो वह बिना किसी संकोच के नेताजी के अंतिम अवशेषों को भारत को सौंप देगी। रे ने कहा, इसलिए नई दिल्ली को जापान से अनुरोध करने की जरूरत है। सवाल जवाब के दौरान आशीष रे कहते हैं यह एक अकथनीय त्रासदी है।
सुभास चंद्र बोस भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के सितारों में से एक थे। उन्होंने देश की आजादी के लिए अपना बलिदान दिया। वह व्यापक रूप से भारत में पूजनीय है, मगर अभी तक भारत के लोगों को उनकी मृत्यु के 75 साल बाद भी उनकी अस्थियां भारत में वापस लाने का शिष्टाचार नहीं है। क्या इससे भी ज्यादा कुछ अपमानजनक हो सकता है? क्या इससे बड़ा अन्याय हो सकता है? उनकी अस्थियां टोक्यो के रेंकोजी मंदिर में संरक्षित है। ताइपे में एक विमान दुर्घटना के बाद नेताजी की मृत्यु हो गई। उनके पार्थिव शरीर का अंतिम संस्कार किया गया और उनके अंतिम अवशेष टोक्यो पहुंचाए गए, जहां सितंबर 1945 से ही उनके अवशेष रेंकोजी मंदिर में रखे हुए हैं।
उन्होंने बताया कि भारत में नेताजी के विस्तृत परिवार के पथभ्रष्ट (मामले की सही जानकारी नहीं) सदस्य और विषय से अनभिज्ञ लोगों ने दो प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पी. वी. नरसिम्हा राव को जो ऐसा करने से रोका, जो कि भारत में अवशेष लाना चाहते थे। कोलकाता में दंगों की चेतावनी देने वाली भारतीय खुफिया एजेंसियों द्वारा डराने का एक कारण है, जिससे विभिन्न सरकारें भारत में अवशेषों को लाने की हिम्मत नहीं कर पाई। तथ्यों को जानने वाला कोई भी शिक्षित व बुद्धिमान भारतीय कभी भी नेताजी के अवशेषों को भारत में लाए जाने का विरोध करेगा, बल्कि वे तो इस कदम पर खुशी मनाएंगे।
प्रोफेसर अनीता की दलील है कि उनके पिता की महत्वाकांक्षा एक आजाद भारत में लौटने की थी। चूंकि ऐसा नहीं हो सका, इसलिए कम से कम उनके अवशेषों को तो भारत की धरती पर लाया जाना चाहिए। दूसरी बात यह है कि उन्हें लगता है कि बंगाली हिंदू परंपरा के अनुसार, उनके पिता के अवशेषों का अंतिम निपटान होना चाहिए या उन्हें गंगा नदी में विसर्जित किया जाना चाहिए।