श्री गुरू नानक देव जी सिखों के प्रथम गुरु (आदि गुरु) हैं। इनके अनुयायी इन्हें गुरु नानक, गुरु नानक देव जी, बाबा नानक और नानकशाह नामों से बुलाते हैं। गुरु नानक दार्शनिक, योगी, गृहस्थ, धर्मसुधारक, समाजसुधारक, कवि, देशभक्त थे। उनके जीवन से कई ऐसी बातें सीखने को मिलती हैं जिन्हें यदि हर मनुष्य अपने जिंदगी में उतार लें तो उसे वर्तमान की विषम परिस्थितियों में जीने की कला आ सकती है। हमारे अस्तित्व का एक ही लक्ष्य है और वो है आध्यात्मिक, जिसकी हम सामान्यत: अवहेलना कर रहे हैं। इसलिए हममें से अधिकांश व्यक्ति अशांत हंै। हम छोटी-छोटी बातों के लिए लड़ते हैं। हम यह भूल जाते हैं कि हम सभी में एक ही प्रकाश है और वो है ज्योतिसम् ज्योति:। यह प्रत्येक मनुष्य में है। यदि कोई जानना चाहे कि जीवन का सत्य क्या है ? तो उसके लिए यह अनिवार्य है। वह अपने ह्दय के गुप्त भाग में ध्यान के जरिए प्रवेश करें, क्योंकि परमात्मा ऊपर आसमान में नहीं। न वह तारों में है। न वो समुद्र में हैं वह तो अंत: मन में बसा हुआ है। जिसे बस खोजने की जरूरत है। हमारे यहां अनेक धर्म हैं। गुरु नानक ने अपने समय में हिंदू-मुस्लिम को परस्पर विरोधी के तौर पर देखा और कहा तुम रूपों को लेकर, समारोहों को लेकर, सिद्धांतों और तीर्थस्थानों को लेकर आपस में क्यों झगड़ते हो? हम सभी एक ही ईश्वर की पूजा करते हैं जो ओंकार है। जो एक है। बस नाम और रूप अलग-अलग हैं। हमें अपने जीवन के प्रत्येक क्षण अपने से पूछना चाहिए कि क्या हम जिन महान उपदेशों को देते हैं उनका अपने जीवन में पालन भी करते हैं। यदि हम सचमुच पालन कर रहे होते तो इतने सामाजिक मतभेद नहीं होते और न हममें इतने धार्मिक अंतर होते। आरंभ हम स्वयं से करें। अधिकांश लोग सोचते हैं कि संतों के जीवन में कठोरता और उदासीनता होती है। यह सत्य नहीं है। जो परमात्मा से साक्षात्कार करते हैं वे समाज के दु:ख या विफलताओं के प्रति कठोर दृष्टिकोण नहीं रखते हैं। वो सभी मानवीय दु:खों के प्रति सहानुभूति का नजरिया रखते हैं।