क्या आप जानते हैं कि मुहर्रम कोई त्यौहार नहीं है बल्कि ये एक मातम दिन है। इस्लाम के पैगंबर मोहम्मद साहब के छोटे नवासे (नाती) इमाम हुसैन और उनके साथियों की शहादत की याद में मुहर्रम मनाया जाता है। इस्लामिक कलैंडर के अनुसार मुहर्रम एक महीना है, जिसमें शिया मुस्लिम दस दिन तक इमाम हुसैन की याद में शोक मनाते हैं। इस माह को इस्लाम के चार पवित्र महीनों में शुमार किया जाता है। अल्लाह के रसूल हजरत मुहम्मद (सल्ल.) ने इस मास को अल्लाह का महीना कहा है। मुहर्रम के बारे में जानने के लिए हमें इतिहास के पन्नों को उलटकर देखना पड़ेगा, जब इस्लाम में खिलाफत यानी खलीफाओं का शासन था। सन् 60 हिजरी की बात है। मोहम्मद साहब के मरने के लगभग 50 वर्ष बाद मक्का से दूर कर्बला के गवर्नर यजीद ने खुद को खलीफा घोषित कर दिया। कर्बला जिसे अब सीरिया के नाम से जाना जाता है। वहां यजीद इस्लाम का शहंशाह बनाना चाहता था। इसके लिए उसने आवाम में खौफ फैलाना शुरू कर दिया। लोगों को गुलाम बनाने के लिए वह उन पर अत्याचार करने लगा। यजीद पूरे अरब पर कब्जा करना चाहता था लेकिन उसके सामने हजरत मुहम्मद के वारिस और उनके कुछ साथियों ने अपने घुटने नहीं टेके और जमकर मुकाबला किया। अपने बीवी बच्चों की सलामती के लिए इमाम हुसैन मदीना से इराक की तरफ जा रहे थे तभी रास्ते में यजीद ने उन पर हमला कर दिया। इमाम हुसैन और उनके साथियों ने मिलकर यजीद की फौज का डटकर सामना किया। हालांकि वे इस युद्ध में जीत नहीं सके और सभी शहीद हो गए। किसी तरह हुसैन इस लड़ाई में बच गए। यह लड़ाई मुहर्रम 2 से 6 तक चली। आखिरी दिन हुसैन ने अपने साथियों को कब्र में दफ्न किया। मुहर्रम के दसवें दिन जब हुसैन नमाज अदा कर रहे थे, तब यजीद ने धोखे से उन्हें भी मरवा दिया। उस दिन से मुहर्रम को इमाम हुसैन और उनके साथियों की शहादत के त्यौहार के रूप में मनाया जाता है।