अमेरिका की भांति 'बाय इंडिया एक्ट' बनाए केंद्र सरकार : आरपी सिंह
सामरिक क्षेत्रों में चीनी कंपनियों की उपस्थिति देश की सुरक्षा को खतरा
इंडिया न्यूज सेंटर,जालंधरः जिस तरह अमेरिका ने 'बाय अमेरिका एक्ट-1933' बना कर वहां के सरकारी संस्थानों को स्वदेशी माल की खरीद सुनिश्चित की हुई है उसी तरह भारत सरकार भी 'बाय इंडिया एक्ट' बना कर यह यकीनी बनाए कि हर सरकारी स्तर पर भारत में बने माल की ही खरीददारी की जाए। यह विचार स्वदेशी जागरण मंच के महानगर संयोजक आरपी सिंह ने चीनी माल पर प्रतिबंध की मांग को लेकर प्रधानमंत्री के नाम डिप्टी कमिश्नर को ज्ञापन सौंपने के दौरान व्यक्त किए है। उन्होंने कहा कि हमारे सामरिक क्षेत्रों में चीनी कंपनियों की उपस्थिति व भारतीय कंपनियों के साथ उसकी बढ़ती सह-भागीदारी भी देश की सुरक्षा के लिए खतरनाक है।
प्रधानमंत्री को सौंपे ज्ञापन में स्वदेशी जागरण मंच ने इस बात पर खेद जताया कि अत्यंत घटिया व पर्यावरण दी दृष्टि से खतरनाक होने के बावजूद भारत चीन से तरह-तरह का सामान आयात कर रहा है। इससे हमारे इलेक्ट्रॉनिक्स, इलेक्ट्रिकल्स, टायर, खेल, साईकिल, चमड़ा व उपभोक्ता वस्तुओं से जुड़े उद्योग खतरे में पड़ चुके हैं। हमारा युवा बेरोजगार होता जा रहा है और कुशल श्रमिक बेकार। चीन से हमारा व्यापार घाटा 52.7 अरब डालर तक पहुंच चुका है जो कुल व्यापार घाटे का 41 प्रतिशत बनता है। चीन हमारी इस सदाश्यता का प्रतिउत्तर शत्रुता से दे रहा है। वह न केवल पाकिस्तान की भारत विरोधी कामों में सहायता करता है बल्कि संयुक्त राष्ट्र में मसूद अजहर जैसे आतंकियों का वकील भी बना हुआ है। आरपी सिंह ने कहा कि भारतीयों द्वारा किए गए चीनी माल के बहिष्कार, केंद्र द्वारा चीनी पटाखों पर लगाए प्रतिबंध, स्टील उद्योग पर लगाई गई 18 प्रतिशत एंटी डंपिंग ड्यूटी आदि कदमों के सकारात्मक परिणाम निकले हैं और अब व्यापार घाटा 2 अरब डालर कम रहने का अनुमान है। समाज द्वारा किए बहिष्कार के चलते चीनी माल की बिक्री पर 30 से 50 प्रतिशत तक असर पड़ा है परंतु अभी इस दिशा में बहुत कुछ किया जाना बाकी है। अपने ज्ञापन में स्वदेशी जागरण मंच ने मांग की है कि सरकार आयात होने वाली हर वस्तु के मानक तय करे और घटिया सामान के मंगवाने पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाए। विश्व व्यापार संगठन के नियमों से अंतर्गत बहुत से देश इस दिशा में कदम उठा रहे हैं। चीन के साथ रिजनल कांप्रिहेसिव इक्नॉमिक्स पार्टनरशिप सहित किसी भी प्रकार का समझौता न किया जाए। चीन की अधिकतर कंपनियां सरकारी हैं और संकटकाल में यह कंपनियां देश के लिए खतरनाक साबित हो सकती हैं। इन पर प्रतिबंध लगना चाहिए और सामरिक क्षेत्रों में तो इनका प्रवेश वर्जित होना चाहिए। किसी भी सरकारी स्तर पर चीनी कंपनियों को पूंजीनिवेश को प्रोत्साहित करने का प्रयास नहीं होना चाहिए। ज्ञापन देने से पहले स्वदेशी जागरण मंच के कार्यकर्ताओं ने डीसी दफ्तर के बाहर चीन के उत्पादों, प्रत्यक्ष विदेशी पूंजीनिवेश के खिलाफ प्रदर्शन किया। इस अवसर पर विजय गुलाटी, राजन कुमार, रामगोपाल, अरविंद धूमल, वरिंद्र बंटी, जवाहर सिंह नामधारी, सुमेश लूथरा, पवन खन्ना, मदन लाल, सुरेंद्र आनंद, प्रो. संजीव नंदा, आर्किटेक्ट इरविन दीप, नरेश कुमार, प्रदीप सल्गौत्रा, प्रो. एएल मित्तल, राजिंद्र शिंगारी सहित अनेक कार्यकर्ता मौजूद थे।
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