इंडिया न्यूज सेंटर, भोपाल: पापा बचाओ, कोई है? प्लीज बचाओ। मगर ट्रेन की बर्थ में फंसे हुए सत्येंद्र इतने बेबस थे कि वह कुछ नहीं कर सके। सत्येंद्र अपनी बेटी से कहना चाहते थे कि वह हिम्मत न हारे लेकिन स्टील के अंदर दबे होने की वजह से उनकी आवाज तक नहीं निकल पा रही थी और आखिरकार बेटी ने उनके सामने ही दम तोड़ दिया। यह आपबीती है दुर्घटनाग्रस्त इंदौर-पटना एक्सप्रेस ट्रेन में सफर कर रहे यात्री की। ट्रेन में दबे होने के बावजूद वह महसूस कर पा रहे थे कि आसपास ही कहीं उनकी पत्नी भी है लेकिन वह कुछ नहीं कर सकते थे। सत्येंद्र सिंह के एक रिश्तेदार ने बताया कि जिस वक्त इंदौर-पटना एक्सप्रेस ट्रेन पटरी से उतरी सिंह बी3 कोच के लोअर बर्थ पर थे। दुर्घटना के बाद वह इस तरहफंस गए कि वह खुद एक उंगली तक नहीं हिला सकते थे। उनका चेहरा पूरी तरह कुचल चुका था। उनकी नाक फ्रैक्चर हो गई और वह मुश्किल से सांस ले पा रहे थे। उनके हाथ और पैर दब चुके थे। सिंह इस हालत में 4 घंटे रहे। उन्हें सोमवार सुबह बताया गया कि अब उनकी पत्नी गीता और बेटी रागिनी इस दुनिया में नहीं हैं। सिंह को कानपुर से एंबुलेंस के जरिए भोपाल पहुंचाया गया। स्ट्रेचर पर सिसकते हुए सिंह ने अपनी पत्नी गीता की मांग में सिंदूर भरा। इसके बाद उन्होंने आखिरी बार अपनी बेटी को आशीर्वाद दिया। दोनों के पार्थिव शरीर को जहां अंतिम संस्कार के लिए ले जाया गया वहीं सिंह को वापस अस्पताल सर्जरी के लिए पहुंचाया गया ताकि उनके दोनों फ्रैक्चर पैरों से ब्लड क्लॉट निकाले जा सकें। दिल्ली में काम कर रहे सत्येंद्र के बेटे अजय ने बताया कि उनके पिता, माता और बहन हाजीपुर एक शादी के लिए जा रहे थे। जब अजय कानपुर अस्पताल पहुंचे तो उनके पिता ने उन्हें बताया कि ट्रेन में लगभग सभी यात्री सो रहे थे कि उसी वक्त अचानक अजीब सी आवाज हुई, पलक झपकते ही सब तहस-नहस हो चुका था। गीता मिडल बर्थ पर थीं और रागिनी अपने सामने वाले लोअर बर्थ पर। मिडल बर्थ पर होने की वजह से शायद गीता ने तुरंत दम तोड़ दिया था, लेकिन रागिनी बहुत देर तक मदद के लिए चिल्लाती रही लेकिन मेरे पिता मजबूर थे।