पीएम मोदी ने की विमान सेवा की घोषणा
इंडिया न्यूज सेंटर,नई दिल्लीः श्रीलंका व वाराणसी के बीच बौध धर्म के कारण खास रिस्ता है। इसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए सबंधों को और प्रगाढ़ करते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने श्रीलंका से वाराणसी के बीच अगस्ता माह से सीधी फलाईट की घोषणा कर दी है। श्रीलंका का प्रचीनकाल से ही बेहद मधुर रिस्ता रहा है। श्रीलंका की यात्रा पर गए वाराणसी से सांसद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को 14वें अंतरराष्ट्रीय वेसाक दिवस में शामिल हुए। कोलंबो में प्रधानमंत्री ने कहा कि वेसाक दिवस बौद्ध धर्म का सबसे बड़ा त्योहार है। श्रीलंका से हमारा पुराना नाता है। भारत, बुद्ध की धरती है। बुद्ध के समय से ही भारत-श्रीलंका के बीच दोस्ती शुरू हुई थी। भारत, श्रीलंका के आर्थिक विकास के लिए प्रतिबद्ध है। उन्होंने कहा कि भारत से ही बौद्ध धर्म श्रीलंका पहुंचा। सम्राट अशोक के बेटी संघमित्रा इसे श्रीलंका लेकर आए। विमान सेवा शुरु होने से इससे बुद्ध से जुड़े स्थान श्रीलंका से जुड़ सकेंगे। यहां के तमिल लोग काशी विश्वनाथ मंदिर भी जा सकेंगे। दरअसल श्रीलंका और बनारस के बीच रिश्तों की शुरुआत सम्राट अशोक के समय हुई। सम्राट अशोक की बेटी संघमित्रा बोधिवृक्ष की एक शाखा लेकर श्रीलंका जाती हैं और वहां बौद्धधर्म का प्रचार प्रसार करती हैं। बोधिवृक्ष की शाखा श्रीलंका के अनुराधापुरम स्थित महाम्यून उद्यान में लगाया गया है। ऐतिहासिक दृष्टि से यह अब तक का ज्ञात सबसे प्राचीन वृक्ष लगभग 2250 वर्ष पुराना है। सन 1931 में श्रीलंका से बोधि वृक्ष की एक शाखा महाबोधि सोसायटी ऑफ इंडिया के संस्थापक भिक्षु अनागारिक धर्मपाल सारनाथ ले आए और उसे मूलगंध कुटी विहार बौद्ध परिसर में लगाया गया। तभी से श्रीलंका समेत पूरे विश्व से आने वाले बौद्ध अनुयायी यहां आकर दर्शन-पूजन संग इस वृक्ष की परिक्रमा करते हैं। बौद्ध अनुयायियों में इस वृक्ष की इतनी महत्ता है कि वह शाखा से टूटकर गिरे पत्तों को भी पूजा के लिए अपने साथ ले जाते हैं। यही पर भगवान बुद्ध की पांच शिष्यों को उपदेश देते मूर्ति भी बनी है। एक और खास बात बनारस को श्रीलंका से जोड़ती है। श्रीलंका में बड़ी संख्या में तमिल रहते हैं जो भगवान शिव के उपासक होते हैं। हर साल बड़ी संख्या में तमिल पूरे विश्व से भगवान भोलेनाथ की नगरी काशी में दर्शन के लिए आते हैं। यही नहीं करीब पांच हजार तमिल बनारस में निवास करते हैं।