डोकलाम के बाद ICJ में जीत मोदी सरकार की बड़ी कामयाबी
इंडिया न्यूज सेंटर,नई दिल्लीः नीदरलैंड के हेग स्थित अतंरराष्ट्रीय अदालत (आईसीजे) में भारत की जीत जितनी महत्वपूर्ण है, उससे ज्यादा महत्व अंतरराष्ट्रीय जगत में उसकी उपस्थिति का है। यह भारत की एक बड़ी कूटनीतिक विजय है। ऐसा कहा जा सकता है कि डोकलाम विवाद के बाद अंतरराष्ट्रीय प्लेटफॉर्म पर यह दूसरा बड़ा मुद्दा है, जहां मोदी सरकार ने देश का गौरव बढ़ाया है। यूएन में भारत का प्रतिनिधित्व करने वाले सैयद अकबरुद्दीन ने कहा कि अब भारत को वैश्विक स्तर पर पहचान मिल रही है जो कि अपने आप में ऐतिहासिक है। दरअसल, आईसीजे में पहली बार ब्रिटेन का कोई भी जज नहीं होगा। 1946 के बाद आईसीजे में उसे अपनी सीट गंवानी पड़ी है। सुरक्षा परिषद में चुनिंदा देशों के साथ बहुमत का दंभ भरने वाला ब्रिटेन अंततः अपना नाम वापस लेने को मजबूर हो गया। संयुक्त राष्ट्र की आम सभा (जनरल असेंबली) में भारत को दो तिहाई बहुमत हासिल हो चुका था। ऐसे में सुरक्षा परिषद की आड़ में ब्रिटेन बार-बार भारत को रोकने की कोशिश कर रहा था। लेकिन, उसकी 'पैंतरेबाजी' काम नहीं आई। उसे यह आभास हो गया था कि उसकी कूटनीतिक हार हो चुकी है। बेहतर है, और छीछालेदर हो, इससे पहले ही नाम वापस ले लिया जाए। ब्रिटेन का अखबार भी लिखता है कि दुनिया के शक्ति संतुलन में वह अप्रांसगिक हो चुका है। यूरोपियन यूनियन की सदस्यता खोने के बाद उनका भी समर्थन पहले की तरह नहीं मिल रहा है।
1946 से अबतक कभी नहीं हुआ ऐसा: बता दें कि ब्रिटेन ने उम्मीदवार का नाम वापस लेना अपने आप में हैरान करने वाला है क्योंकि अब ICJ में उसका कोई भी जज नहीं है, 1946 के बाद से अबतक पहले कभी ऐसा नहीं हुआ है। इस पूरे घटनाक्रम को सैयद अकबरुद्दीन ने भारत का बढ़ता प्रभाव माना है।
आईसीजे में एशियाई देशों का वर्चस्व
भारत के अलावा चीन, जापान और रूस एशिया का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।
किस तरह से ICJ में चुने जाते हैं जज
आईसीजे में कुल 15 जज होते हैं। हर तीन साल पर 5 जजों का चुनाव होता है। जजों का कार्यकाल नौ साल का होता है। उम्मीदवारों को यूएन की जनरल असेंबली और सुरक्षा परिषद दोनों ही जगहों पर बहुमत हासिल करना होता है।
क्या होता है आईसीजे का काम
आईसीजे दो देशों के बीच विवाद पर फैसले सुनाता है। इसके अलावा यूएन की इकाइयों के अनुरोध पर यह उन्हें परामर्श भी देता है।
इस बार भंडारी के अलावा कौन-कौन थे उम्मीदवार
फ्रांस के रूनी अब्राहम, सोमालिया के अब्दुलकावी अहमद युसूफ, ब्राजील के एंटोनियो अगुस्टो कैंकाडो और लेबनान के नवाफ सलाम।
कौन है भंडारी
दलवीर सिंह भंडारी मूल रूप से राजस्थान के जोधपुर के हैं। उनके पिता राजस्थान बार एसोसिएशन के सदस्य रह चुके थे। जोधपुर से कानून की पढ़ाई की है। उन्होंने शिकागो से मास्टर की डिग्री हासिल की है। वह मुंबई हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और उसके बाद सुप्रीम कोर्ट के जज रह चुके हैं।
डोकलाम विवाद पर भी भारत की हुई थी जीत
निश्चित तौर पर भारत की यह बहुत बड़ी जीत है। इंटरनेशनल प्लेटफॉर्म पर इसके पहले डोकलाम विवाद को लेकर भारत और चीन के बीच बहुत कुछ कहा जा रहा था। कुछ लोगों का आकलन था कि चीन भारत को पीछे हटने पर मजबूर कर देगा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। दोनों देशों ने एक साथ हल निकाला। चीन की धमकी के आगे भारत ने कभी भी अपना स्टैंड नहीं बदला। डोकलाम विवाद पर चीन ने ही पहले अपनी सेना आगे कर दी थी।