इंडिया न्यूज सेंटर, नवी मुंबईः देश के प्रॉपर्टी कारोबार में अब बड़े विदेशी निवेशकों का प्रवेश होने वाला है. इन निवेशकों को भारतीय बाजार में घुसाने के लिए केंद्र सरकार बेनामी सम्पति,ई प्रॉपर्टी,रियल इस्टेट रेग्युलेटर जैसे क़ानून बना चुकी है। हालांकि इन कानूनों को बनाने के लिए सरकार की तरफ से तर्क दिया जा रहा है कि वह रियल इस्टेट कारोबार में सफाई कर रही है और लोगों या घर खरीदने वालों के पैसों या निवेश की सुरक्षा कर रही है लेकिन इसका बड़ा मकसद दुनिया के बड़े निवेशकों को भारतीय रियल इस्टेट कारोबार में लाना है।
उल्लेखनीय है कि हमारे देश में रियल इस्टेट कारोबार में घरेलु निवेशक बड़े पैमाने पर मुनाफा उठाते रहे हैं लेकिन इन निवेशकों के समक्ष कुछ अड़चने भी रहती थी जैसे, जमीन का टाईटल, प्रोजेक्ट निर्धारित समय में पूरा ना होने, भवन निर्माता द्वारा वायदे पूरा ना करना, असुरक्षित निवेश और मुद्रा स्फीति की बढ़ती दर। इन्ही अड़चनों को दूर करने के लिए विदेशी निवेशकों का सरकार पर दबाव बनाया हुआ है। इस दबाव के चलते सरकार ने अब विदेशी निवेशकों के लिए रेड कारपेट बिछाने की तैयारी कर ली है। सरकार अब प्राइवेट इक्विटी प्लेयर के रूप में विदेशी निवेशकों से हाउसिंग प्रोजेक्ट में निवेश का रास्ता सुगम करायेगी। प्राइवेट इक्विटी प्लेयर को भागीदारी प्लेटफार्म कहा जाता है। पिछले कुछ वर्षों में भारत में विभिन्न तरह के इक्विटी या ऋण प्लेटफार्मों की रचना हुई है। इन प्लेटफार्मों के द्वारा अब तक करीब 14 हजार करोड़ रूपया रियल इस्टेट प्रोजेक्ट्स में निवेश भी हो चुका है। अब तक यह निवेश प्राइम प्रोपर्टी तक ही सीमित था लेकिन अब इनका ध्यान मध्यम और कम बजट की आवासीय, विशेष रूप से सस्ती और मिड सेगमेंट परियोजनाओं की तरफ केंद्रित हो रहा है। इसका एक कारण यह भी है कि इस तरह की प्रॉपर्टी में मुनाफ मोटा है। अब तक इस तरह की प्रॉपर्टी में देश का मध्यम वर्ग या छोटा व्यापारी निवेश करता था लेकिन आने वाले दिनों में यह तस्वीर बदलने वाली है।यह बदलाव साल 1998 के शेयर बाजार में हुए बड़े बदलाव जैसा लग रहा है। साल 1998 में शेयर सर्टिफिकेट का डीमेट होना शुरू किया गया था।
साल 1999 में डीमेट को अनिवार्य बना दिया या इस प्रक्रिया ने शेयर कारोबार की तस्वीर बदल डाली.बाजार के कारोबार में से छोटे निवेशक हाशिये पर चले गए और बड़े निवेशक या विदेशी निवेशकों का कब्ज़ा हो गया। रियल इस्टेट कारोबार में विदेशी निवेश सबसे अधिक साल 2009 में हुआ था लेकिन धीरे धीरे घटता गया. इसका कारण यह बताया जाता है कि पिछली युपीए सरकार ने निवेशकों के मन माफिक कानूनों में बदलाव नहीं किया लेकिन अब सरकार ने नियमों में बदलाव लाया है तो यह उम्मीद की जा रही है कि विदेशी निवेश के कारण रियल इस्टेट कारोबार में तेजी आयेगी। निवेश के इस यह मॉडल ने ऐतिहासिक उंचाई साल 2009 में छुई थी। उस समय आवासीय रियल एस्टेट में प्राइवेट इक्विटी (पीई) निवेश का हिस्सा 60% तक पंहुच गया था, लेकिन अब वह घटकर 10% तक हो गया है। सरकार द्वारा उठाया गया नोट बंदी का कदम भी इस संदर्भ में देखा जा रहा है। अधिकाँश विशेषज्ञों का यही मानना है कि रियल इस्टेट कारोबार में कालाधान काफी मात्रा में लगा रहता है। अब नोट बंदी के बाद इस कारोबार में भी नकदी की कमी आनी स्वाभाविक है। भवन निर्मार्ताओं को ऐसे में अपने प्रोजेक्ट पूर्ण करने के लिए बड़े निवेशकों की तरफ हाथ बढ़ाना होगा।