-60 कर्मचारियों के वेतन से अवैध रूप में 6 हजार रुपए प्रतिमाह काटने का मामला
इंडिया न्यूज सेंटर, चंडीगढ़ : पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट की जस्टिस सूर्यकांत एवं सुदीप आहलूवालिया की खंडपीठ ने रेल कोच फैक्टरी के कर्मचारियों के केस की सुनवाई के दौरान आरसीएफ प्रशासन को फटकार लगाई है। कोर्ट ने कहा हैकि कर्मचारियों को जारी किए तीसरे वित्तीय अपग्रेडेशन के लाभ के तहत बढ़े हुए वेतन में से की जा रही कटौती पर पूर्णत: रोक लगा दी। इंजीनियर्ज एसोसिएशन आरसीएफ ने प्रशासन पर आरोप लगाया था कि महाप्रबंधक एवं मुख्य कार्मिक अधिकारी के अधीन उन 60 कर्मचारियों के वेतन से अवैध रूप से 6 हजार रुपए प्रतिमाह काटे जा रहे थे जो कि अब तक 40 लाख से भी अधिक की राशि हो गई है जो बढ़े हुए वेतन के बाद उन्हें मिलनी चाहिए थी।
कर्मचारियों को 2011, 2012 एवं 2013 में रेलवे बोर्ड के 10 जून, 2009 को जारी पत्र का हवाला देते हुए दिए गए वित्तीय लाभ रेडिका ऑडिट विभाग की दखलअंदाजी के कारण प्रशासन ने नाजायज व मनमाने तरीके से वापस ले लिए।
गौरतलब है कि 6 मार्च को पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट की खंडपीठ के जस्टिस सूर्यकांत एवं सुदीप आहलूवालिया ने मामले की सुनवाई करते हुए वेतन में कटौती पर पूर्णत: रोक लगाते हुए प्रशासन को 11 जुलाई, 1991 को हुई प्रमोशन को आधार मानते हुए एम.ए.सी.पी. के तहत दूसरी फाइनैंशियल अपग्रेडेशन की तिथि एफीडैविट पर स्पष्ट करने के निर्देश दिए थे।
23 मार्च को इंजीनियर्ज एसोसिएशन द्वारा आर.सी.एफ. के महाप्रबंधक सी.पी.ओ. को दिए गए पत्र में हाईकोर्ट ने 6 मार्च को दिए आदेशों के तहत काटी जा रही राशि पर रोक लगा दी थी। वहीं, इस संबंध में आल इंडिया रेलवे इंजीनियर फैडरेशन के चीफ एडवाइजर व प्रैस सचिव इंजी. बृज मोहन ने बताया कि माननीय सर्वोच्च न्यायालयके स्थापित नियमों के मुताबिक किसी भी रूप में जो वेतन बढ़ाकर कर्मचारियों को अदा किया जा चुका हो उसमें दोबारा कटौती नहीं की जा सकती है। उन्होंने कहा कि इस संबंध में इससे पूर्व आर.सी.एफ. प्रशासन ने सभी प्रभावित कर्मचारियों को केंद्रीय प्रशासनिक ट्रिब्यूनल चंडीगढ़ का दरवाजा खटखटाने के लिए मजबूर किया था। ट्रिब्यूनल ने दायर किए केस पर प्राथमिक सुनवाई करते हुए आर.सी.एफ. प्रशासन, रेलवे बोर्ड, ऑडिट विभाग एवं डी.ओ.पी.टी. इत्यादि को नोटिस जारी कर आर.सी.एफ. प्रशासन को किसी भी तरह की कटौती न करने के आदेश दिए थे। वहीं नवम्बर 2015 में ट्रिब्यूनल चंडीगढ़ ने अपनी आखिरी सुनवाई करते हुए उक्त केस खारिज कर दिया था। उसके बाद ही कर्मचारियों ने पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में उक्त केस दायर किया था।