इंडिया न्यूज सेंटर, हरिद्वार। पितृ पक्ष में रखें इन बातों का खास ख्याल रखें तभी मिलेगा श्राद्ध का लाभ। भाद्रपद मास की पूर्णिमा से आश्विन मास की अमावस्या तक का जो 16 दिन का समय होता है, वह श्राद्ध पक्ष कहलाता है। इस बार शुक्रवार श्राद्ध पूर्णिमा से 30 सितंबर, शुक्रवार अमावस्या तक श्राद्ध पक्ष होगा। पितृ पक्ष के समय पितरों का तर्पण कर उनके मोक्ष की कामना की जाती है। हिंदू धर्म और पंचांगों में श्राद्ध के लिए बहुत सारे नियम बने हैं। जिनका पालन करना हर एक हिंदू के लिए अनिवार्य है। श्राद्ध करने से पितरों का आशीर्वाद तो बना रहता है। उनकी आत्मा को भी शांति मिलती है।
श्राद्ध से जुड़े नियम कायदे-कानून को बहुत कम लोग जानते हैं। मगर इसे जानना जरुरी भी होता है। जो विधिपूर्वक श्राद्ध नहीं करते वो अपने पुर्वजों के कोप का भाजन बनते हैं। आपको बता रहे हैं कि कैसे श्राद्ध के दौरान इन बातों का ध्यान रख सकते है।
श्राद्ध के दिनों में लहसुन, प्याज रहित सात्विक भोजन घर की रसोई में बनना चाहिए, जिसमें उड़द की दाल, बड़े, चावल, दूध-घी से बने पकवान, खीर, मौसमी सब्जी जो बेल पर लगती है, जैसे- तोरई, लौकी, सीताफल, भिण्डी, कच्चे केले की सब्जी आदि ही भोजन मे मान्य है।
आलू, मूली, बैंगन, अरवी तथा जमीन के नीचे पैदा होने वाली सब्जियां पितरों को नहीं चढ़ती हैं। श्राद्ध के लिए तैयार भोजन की तीन-तीन आहुतियों और तीन-तीन चावल के पिण्ड तैयार करने के बाद ‘प्रेतमंजरी’ के मंत्रोच्चार के बाद ज्ञात और अज्ञात पितरों को नाम और राशि से सम्बोधित करके आमंत्रित किया जाता है।
कुशा के आसन में बिठाकर गंगाजल से स्नान कराकर तिल,जौ और सफेद रंग के फूल और चन्दन आदि समर्पित करके चावल या जौ के आटे का पिण्ड आदि समर्पित किया जाता है। फिर उनके नाम का नैवेद्ध रखा जाता है ।
ब्राह्मण को भोजन मौन रहकर करवाएं, क्योंकि पितर तब तक ही भोजन ग्रहण करते हैं। जब तक ब्राह्मण मौन रहकर भोजन करें। जो पितृ शस्त्र आदि से मारे गए हैं, उनका श्राद्ध मुख्य तिथि के अतिरिक्त चतुर्दशी को भी करना चाहिए। इससे वे प्रसन्न होते हैं। श्राद्ध में जौ, कांगनी, मटर और सरसों का उपयोग श्रेष्ठ रहता है। दूसरे की भूमि पर श्राद्ध नहीं करना चाहिए। श्राद्ध करते समय यदि कोई भिखारी आ जाए तो उसे आदरपूर्वक भोजन करवाना चाहिए। श्राद्ध में गंगाजल, दूध, शहद, दौहित्र, कुश और तिल का होना जरूरी है। सोने, चांदी, कांसे, तांबे के पात्र उत्तम हैं। इनके अभाव में पत्तल उपयोग की जा सकती है।