Financial loss to middle class in lockdown, more than five crore unemployed
बिजनेस, न्यूज़ डेस्क: बॉलीवुड अभिनेता जावेद हैदर हाल में ठेले पर सब्जी बेचती दिखे, तो पश्चिम बंगाल के क्रिकेटर राजू रहमान दूसरे के खेत में हल चलाते नजर आए। दिल्ली के द्वारका स्थित एक डिपार्टमेंटल स्टोर को इसलिए बंद करना पड़ा क्योंकि 4 महीने से किराया नहीं दे सका था। कोरोना महामारी के बाद बदतर आर्थिक हालातों की यह चंद तस्वीरें हैं इसकी सबसे ज्यादा मार मध्यमवर्ग पर पड़ी है, जहां 5 करोड़ से ज्यादा लोगों की नौकरियां चली गई।
सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनामी (सीएमआईई) और इंडियन सोसायटी ऑफ लेबर इकोनॉमिक्स (आईएसएलई) जैसी संस्थाओं की रिपोर्ट के अनुसार, लॉकडाउन में लगभग 13 करोड़ लोग बेरोजगार हुए हैं। इनमें से 40 फीसदी यानी 5.25 करोड़ ब्लू कॉलर जॉब वाले थे। जो ऑफिस में काम करते थे। निजी क्षेत्र में काम करने वाले अधिकतर मध्यवर्गीय अपने वेतन पर ही निर्भर होते हैं। घर चलाने से लेकर बच्चों की पढ़ाई और घर की ईएमआई तक उनके वेतन से ही जाता है। ऐसे में नौकरी जाने से उनकी आर्थिक हालात बेहद खराब हो चुकी है। इतना ही नहीं जिन की नौकरी बची हुई है उन्हें भी 10-50 फीसदी तक वेतन कटौती झेलनी पड़ रही है।
सरकारी राहत से भी दूर
वैसे तो सरकार ने लॉकडाउन में लोगों और उद्योगों को राहत पहुंचाने के लिए 21 लाख करोड़ रुपए का भारी-भरकम पैकेज घोषित किया। सरकार की सूची में मध्यम वर्ग को राहत देने की कोई योजना नहीं थी। सिर्फ सरकारी नौकरियों से जुड़े एक करोड़ लोग ही इस आर्थिक मार से सुरक्षित रहे। अनलॉक-2 के दौर में गांव लौटे प्रवासी मजदूरों को मनरेगा के तहत काम मिलने लगा है। उनमें कुछ शहर लौट रहे हैं, तो यहां पटरी पर आ रहे छोटे और मझोले उद्योगों में भी काम मिल रहा है। लेकिन मध्यवर्ग के लिए नई नौकरियों के रास्ते फिलहाल खुलते नहीं दिख रहे।
मिल सकता था मुफ्त राशन
सरकार के पास अनाज के भंडार भरे हैं यदि सरकार सभी को राशन की दुकानों से सस्ता राशन देने की घोषणा करती तो मध्यवर्ग के कम से कम आधे परिवार तो इसका लाभ अवश्य उठाते इससे उन्हें बहुत राहत मिलती। - देवेंद्र शर्मा, कृषि और खाद्य विशेषज्ञ
कॉरपोरेट से गरीब तक सभी को राहत
सरकार ने न्यूनतम आयु वर्ग वाली 67 फीसदी आबादी यानी 80 करोड़ लोगों को अप्रैल से नवंबर तक मुफ्त राशन देने की घोषणा की है। 3 महीने तक रसोई गैस भी मुफ्त मिला जनधन खातों में 500 रुपए प्रति माह अलग से मिल रहा। किसानों को भी सालाना 6000 रुपए मिल रहे हैं। कॉरपोरेट के लिए आसान कर्ज सहित कई दूसरे उपाय घोषित किए गए। बावजूद इसके मध्य वर्ग में आने वाले लगभग 30 करोड़ लोगों के लिए सरकार के पास कोई राहत नहीं है।
पश्चिमी देशों ने दी सबसे बड़ी मदद
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के सहायक प्रोफेसर डॉक्टर सूरजीत दास कहते हैं कि ब्रिटेन सहित यूरोप के अधिकतर देशों में सरकार ने लॉकडाउन के दौरान कर्मचारियों के वेतन की 50 से 80 फ़ीसदी राशि निजी कंपनियों को दी। इससे वहां लोगों की नौकरियां बच गई और उन्हें वेतन कटौती का भी सामना नहीं करना पड़ा। भारत में सिर्फ 15,000 रुपए महीने से कम वेतन वालों की भविष्य निधि का भुगतान ही सरकार ने किया है।