"Golden Temple Mail set a 92-year golden journey", Railway New record
वर्ष1928 में बॉलार्ड पियर मोल स्टेशन से पेशावर तक जाती थी गोल्डन टैंपल मेल
फ्रंटियर मेल ब्रिटिश साम्रमाज्य की प्रसिद्ध ट्रेनों में से एक थी
फ्रंटियर मेल के प्रथम श्रेणी में सफ़र करने वाले अधिकतर लोग ब्रिटिश होते थे
निखिल शर्मा,जालंधरः आजादी से पहले शुरु हुई फ्रंटियर मेल अब गोल्डन टैंपल मेल ने आज अपने सफर के 92 साल पूरे कर लिए है। फ्रंटियर मेल ने ब्रिटिश हुकुमत में वर्ष 1928 में अपना सफर शुरु किया था। ब्रिटिश सरकार ने इस ट्रेन की शुरुआत बॉलार्ड पियर मोल स्टेशन से दिल्ली, बठिंडा, फिरोजपुर, लाहौर होते हुए पेशावर तक जाती थी। लेकिन 1 मार्च, 1930 से यह सहारनपुर, अम्बाला, अमृतसर होते हुए पेशावर जाने लगी थी।
फिरोजपुर डिवीजन के मंडल प्रबंधक राजेश अग्रवाल बताते है कि भारतीय रेलवे की सबसे पुरानी लंबी दूरी की ट्रेनों में से एक, गोल्डन टेम्पल मेल ने आज 1 सितम्बर, 2020 को 92 साल की सेवा पूरी कर ली है। उन्होंने सभी को शुभकामनाएं देते हुए कहा कि गोल्डन टेम्पल मेल 1928 से लगातार यात्रियों को सेवा प्रदान कर रही है।
फिरोजपुर मंडल के हेरिटेज अधिकारी एस. पी. सिंह भाटिया “गोल्डन टेम्पल मेल” ट्रेन के बारे में विस्तारपुर्वक जानकारी देते हुए बताया कि इसका उद्घाटन 1 सितम्बर, 1928 को हुआ था। तब यह फ्रंटियर मेल के नाम से जानी जाती थी। शुरुआत में यह ट्रेन बॉलार्ड पियर मोल स्टेशन से दिल्ली, बठिंडा, फिरोजपुर, लाहौर होते हुए पेशावर तक जाती थी। लेकिन 1 मार्च, 1930 से यह सहारनपुर, अम्बाला, अमृतसर होते हुए पेशावर जाने लगी। 1947 में भारत विभाजन के पश्चात्, इस ट्रेन का टर्मिनल स्टेशन अमृतसर बनाया गया। फ्रंटियर मेल को औपचारिक रूप से सितंबर 1996 में “गोल्डन टेंपल मेल” का नाम दिया गया।
फ्रंटियर मेल ब्रिटिश साम्रमाज्य की प्रसिद्ध ट्रेनों में से एक थी
1930 में लंदन के प्रमुख अखबार “दी टाइम्स” ने फ्रंटियर मेल को ब्रिटिश साम्राज्य का सबसे प्रसिद्ध एक्सप्रेस ट्रेनों में से एक बताया था और इस लिस्ट में यह ट्रेन प्रथम स्थान पर थी।
फ्रंटियर मेल के प्रथम श्रेणी में सफ़र करने वाले अधिकतर लोग ब्रिटिश होते थे
फ्रंटियर मेल के प्रथम श्रेणी में सफ़र करने वाले अधिकतर लोग ब्रिटिश होते थे। अतः उनकी सुविधा के लिए ट्रेन में आरक्षण, स्टीमर की बुकिंग के साथ ही लंदन में होती थी। आरामदायक यात्रा सुनिश्चित करने के लिए ट्रेन के प्रथम श्रेणी के प्रत्येक डिब्बों में शौचालय, बाथरूम, विशेष रूप से निर्मित बर्थ एवं दिन के लिए आरामदायक कुर्सियां लगी हुई थी। पूरे कोच में बिजली के पंखे और लाइट लगे हुए थे। फ्रंटियर मेल अपनी समयनिष्ठा के लिए जानी जाती थी और यह कहावत थी कि आपकी रोलेक्स घड़ी आपको धोखा दे सकती है, लेकिन फ्रंटियर मेल नहीं।
फ्रंटियर मेल भारतीय प्रायद्वीप की पहली वातानुकुलित ट्रेन थी
फ्रंटियर मेल भारतीय प्रायद्वीप की पहली ट्रेन थी जिसमें 1934 में वातानुकूलित कोच लगाया गया था। उन दिनों वातानुकूलित प्रणाली में बर्फ की सिल्लियाँ कोच के नीचे बने ब्लाक में रखकर, एक बैटरी संचालित ब्लोअर द्वारा हवा किया जाता था। जिससे पूरे कोच में ठंडक का अनुभव होता था। बर्फ की सिल्लियों को नियमित अंतराल पर पुनः रखा जाता था। यात्रा के दौरान महत्वपूर्ण समाचारों से अधतन कराने हेतु बॉम्बे बडौदा एंड सेंट्रल इंडिया रेलवे कम्पनी ने लंदन के प्रमुख समाचार पत्र “राइटर” के साथ समझौता किया था। अगर किसी यात्री को टेलीग्राम भेजना होता था तो वह इसे गाड़ी के गार्ड के माध्यम से भेजते थे। गार्ड इसे अगले स्टेशन के स्टेशन मास्टर को देते थे। डाउन ट्रेन में एक मेल बॉक्स उपलब्ध कराया गया था जो यूरोप और अमेरिका जाने वाली चिट्ठियों को बॉम्बे से मेल स्टीमर के द्वारा अगले दिन भेजा जाता था।
ट्रेन के अंदर प्रैंट्रीकार की सुविधा उपलब्ध थी
इस ट्रेन में पैंट्री कार की सुविधा थी जो वर्तमान में भी उपलब्ध है। इसमें उपलब्ध कराये गए खाने की व्यंजनों की तारीफ अनेक यात्रियों ने अपने यात्रा अनुभव के दौरान किया है, जिनमें से कुछ ये हैं- “सबसे अच्छा भोजन जो मैंने किसी अन्य ट्रेन में नहीं किया।“ "रात का खाना सबसे अच्छा था जो मैंने कभी किसी ट्रेन में नहीं लिया था।