Uttar Pradesh: farmers of Bahraich was plundered on the name of crop insurance
सरकार को चाहिए कि इस योजना के वर्तमान क्रियान्वयन व जटिलता पर किसानों की राय लेकर योजना की खामियां दूर करें जिससे प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना अपने वास्तविक मकसद में सफल हो सके
अशफाक खाँ,बहराइचः मोदी सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धियों में शुमार प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का वास्तविक लाभ किसानों को मिल रहा है अथवा किसानों के नाम पर बीमा कंपनियां मोटा मुनाफा पीट रही हैं इसको लेकर एक सार्थक बहस की जरूरत है। भारत सरकार को भी प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के वर्तमान क्रियान्वयन को लेकर इसकी गहन समीक्षा करनी चाहिए। बहराइच जैसे बड़े कृषि क्षेत्रफल वाले जनपद में फसल बीमा योजना के आंकड़े किसान हितों को देखते हुए पूरी तरह से नकारात्मक कहे जा सकते हैं। बाढ़ की विभीषिका जहां हर साल हजारों किसानों की जमीनों के साथ ही उनके सपने भी बहा ले जाती है , वहीं जिले के कुछ कृषि क्षेत्रफल ऐसे हैं जहां आंशिक रूप से सूखे जैसे हालात बन जाते हैं। बहराइच में इन विषमताओं से फसल दर फसल नुकसान झेल रहे कई हजार किसानों के बीच चंद खुशनसीब किसानों को ही फसल बीमा योजना का लाभ मिल सका हैं। वर्ष 2017- 18 के प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के आंकड़े बताते हैं कि इस वर्ष एक लाख चौवालीस हजार पाँच सौ उनसठ (144559) किसान इस योजना के तहत बीमित हुए थे जिसके सापेक्ष में मात्र पन्द्रह हजार दो सौ सत्तासी (15287 ) किसानों को ही फसल बीमा का लाभ मिल पाया। अर्थात 10.57% किसान ही प्रशासन व बीमा कंपनी की कसौटी पर खरे उतर पाए। कैसी अजीब विडंबना है कि एक निरीह बेबस किसान के कर्ज के रुपये में से जितनी सरलता से फसल बीमा योजना के नाम पर पैसे काट लिए जाते हैं जब वही किसान अपनी फसल क्षति का क्लेम मांगता है तो जांच इतनी जटिल हो जाती है कि बीमा कंपनी , राजस्व विभाग व कृषि विभाग के कर्मचारी की संयुक्त जांच प्रक्रिया के नाम पर महीनों बिता देते हैं। उसके बाद भी यह गारंटी नहीं मिल पाती कि किसान को उसकी फसल की क्षतिपूर्ति मिलेगी भी अथवा नहीं। फसल मुआवज़े में जांच की ऐसी जटिलता के कारण बहराइच के किसानों की एक बड़ी आबादी अपनी फसलों के नुकसान के बाद भी किसान बीमा योजना के दायरे में नहीं आ पाती। वर्ष 2017 18 में बीज कंपनी को मिले प्रीमियम की धनराशि पर नजर डाले तो आठ करोड़ तीस लाख उन्चास हजार (49000 ) रुपये बीमा कंपनी को प्रीमियम के तौर पर मिला है। इसके एवज में जनपद के किसानों को फसल मुआवजे के तौर पर बीमा कंपनी ने पाँच करोड़ बयासी लाख बावन हजार दो सौ उनसठ रुपए की धनराशि ही मिल पाई है। सीधे तौर पर देखें तो प्रीमियम की धनराशि तथा मुआवजे की धनराशि के बीच बड़ा अंतर है यानी 2 करोड़ सैंतालीस लाख छियानबे हजार सात सौ इकतालीस रुपए की धनराशि बीमा कंपनी की जेब में पहुंच गई है। बहराइच जैसे जनपद में जहां सिंचाई के मामले में भी किसान आप आत्मनिर्भर नहीं बन सके हैं वहां किसानों के आंसू पोंछ ने के नाम पर जब बीमा कंपनियां डेढ़ करोड़ रुपए साल भर में लूट ले जाएं तो यह मान लीजिए कि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना किसानों के नाम पर बीमा कंपनी को किसानों को लूटने का जरिया बन रही है। सरकार को चाहिए कि इस योजना के वर्तमान क्रियान्वयन व जटिलता पर किसानों की राय लेकर योजना की खामियां दूर करें जिससे प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना अपने वास्तविक मकसद में सफल हो सके।