चूने के पत्थरों के पहाड़ों के बीच प्राकृतिक रूप से मलेशिया में कुआलांपपुर से 12 किलामीटर दूर स्थित बाटू गुफाएं लगभग चार करोड़ वर्ष पुरानी हैं। यहां स्थित 18 गुफाओं के प्रवेश स्थान ओरांग असली कबीले के लोगों की शरणस्थली भी रहे हैं। ऐसा भौतिक विज्ञानियों का मानना है। 1860 में चीनियों ने सब्जियां उगाने के लिए भूूमि के बेकार टुकड़ों की खुदाई आरंभ की उस समय तक इस स्थान की अहमियत का एहसास किसी को नहीं था। चूने के पत्थर की यह पहाडिय़ां 1878 में मशहूर होनी शुरू हुईं जब अमेरिकी प्राकृतिक वेता के साथ-साथ डाली व सायरस ने सरकार के साथ इन्हें चिन्हित किया।
इतिहास
बूटा गुफाओं को भारतीय व्यवसायी के. थंबूसामी पिल्लई ने पूजा स्थान के रूप में मान्यता दिलाई। पिल्लई 1891 में गुफा के प्रमुख प्रवेश के आकार से प्रभावित होकर इस गुफा में भगवान मुरुगा के मंदिर की स्थापना के लिए प्रोत्साहित हुए। कुआलांपपुर में श्री महामरिय्यमा मंदिर की स्थापना के बाद उन्होंने 1892 में श्री सुब्रामनिया स्वामी की मूर्ति को मंदिर गुफा के नाम से जानी जा रही गुफा में स्थापित किया। 1920 में मंदिर की गुफा तक लकड़ी की सीढ़ी बनाई गई। इसे बाद में 272 कंक्रीट के स्टैप्स में बदला गया। 100 मीटर ऊंची गुफा की छत के नीचे हिंदू मंदिरों की स्थापना की गई।
विकास
इन गुफओं का 1970 के दशक में विकास किया गया और इनमें से तमान बाटू गुफाएं, तमान सेलांग, तमान अमानियाह, तमान श्री सेलांग, तमान मेदान बाटू गुफाओं को रिहायशी इलाकों में तब्दील कर दिया गया है। गत दशक में यह क्षेत्र छोटे गांवों से इंडस्ट्रियल स्टेट, नए घरों तथा दुकानों के रूप में बदल चुका है। एलिवेटेड फ्लाईओवर तो पहले ही बनकर तैयार हो चुका है और बाटू गुफाओं तक रेल मार्ग भी बन कर तैयार हो चुका है।
धार्मिक स्थल और उत्सव
धीरे-धीरे बाटू गुफाएं धार्मिक स्थल के रूप में विकसित होती जा रहीं हैं। यहां स्थित मंदिरों में प्रतिदिन 3000 से 5000 श्रद्धालु यहां पूजा अर्चना के लिए आते हैं। इसके अलावा जनवरी 15 से फरवरी 14 तक तमिल मेले के समान यहां महा उत्सव का आयोजन किया जाता है। इस दौरान श्रद्धालु स्थानीय संगीय बाटू नदी से अपनें कांवड़ों में जल भर कर भगवान मुरगन के जलाभिषेक के लिए आते हैं। इस मेले के दौरान श्रद्धालु अपने मुख, जीभ, पीठ व शरीर केे अन्य भागों का छेदन करवाकर कुआलांपपुर के श्री महामरिय्यमा मंदिर से भगवान मुरगन की 42.7 मीटर ऊंची स्वर्ण मूर्ति के जलाभिषेक के लिए पैदल यहां तक पहुंचते हैं। इस छेदन क्रिया को कुछ विशेष लोग ही करते हैं। क्योंकि इस दौरान रात की एक बूंद तक नहीं बहती। इस दौरान कांवडिय़ों के कांवड़ देखने लायक होते हैं जिन्हें भारत से विशेष रूप से मंगवाए गए मोर पंखों से सजाया जाता है। यहां पंहुचकर 272 पौडिय़ों को यह लोग कांवड़ लेकर एक ही सांस में चढ़ जाते हैं। इस दौरान श्रद्धा का ऐसा सैलाब यहां बहता दिखाई देता है जो दुनिया के किसी अन्य भाग में देखने को नहीं मिलता। गत वर्षं 15 लाख से अधिक श्रद्धालु यहां माथा टेकने और मन्नत मांगने के लिए आए।
प्रसिद्ध गुफाएं-वल्लूवार कोट्टम तथा आर्ट गैलरी गुफाएं
मछलियों तथा कछुओं से भरे तालाब के ऊपर बने टेढ़ेमेढ़े पुल के ऊपर से गुजर कर यात्री वल्लूवार कोट्टम तथा आर्ट गैलरी गुफाओं में पहुंचते हैं। वल्लूवार कोट्टम गुफा की दीवारों पर कवियों की रचनाएं और तिरुकुरल के संपूर्ण दोहे अंकित हैं। वल्लूवार कोट्टम गुफा को इस प्रकार से प्रकाशित किया गया है कि उसमें आवाज की गूंज अति प्रिय ढंग से सुनाई देती है। इसके अलावा पांच टांग वाले बैल की मूर्ति भी दर्शनीय है। यह बैल जब तक जिंदा रहा इन्हीं गुफाओं में रहा और अंत में उसकी मूर्ति को इस गुफा में सजाया गया।
रामायण गुफा
पहाड़ी के एक दम बाएं रामायण गुफा स्थित है। रामायण गुफा के रास्ते में 50 फुट ऊंची हनुमान जी की मूर्ति देखने योगय है। इस मंदिर की स्थापना 2001 में की गई थी। इस गुफा में रोशनी का पूर्ण प्रबंध है और इसकी टेढ़ी मेढ़ी दीवारों पर रामायाण को क्रमबद्ध रूप में प्रदर्शित किया गया है। इस दौरान इस बात की अनुभूति होती है कि व्यक्ति रावण के भाई कुंभकरण की अंतडिय़ों के बीच से होकर जा रहा है।
अंधेरी गुफा
पहाड़ी का यह भाग टैपडोर स्पाइडर का बसेरा है। मकड़ी की यह प्रजाति केवल यहीं पाई जाती है विश्व के किसी भी भाग में इसका वजूद देखने को नहीं मिलता। यहां पाई जाने वाली कीटों की प्रजातियां केवल इस लिए महफूज हैं क्योंकि इन गुफाओं में सूर्य की रौशनी नहीं जाती और न ही अभी तक मानवीय पंहुच यहां तक हो पाई। जीव विज्ञानियों को इस बात का खतरा है कि 1989 तक इस क्षेत्र में देखी जाने वाली बकरियों की तरह ही कहीं इनका भी हशर न हो जो आज दिखाई ही नहीं देतीं। शिकारियों ने उन्हें समूल नष्ट कर दिया है। अंधेरी गुफा का एक भाग मंदिर गुफा से सटा हुआ है और इसकी बनावट बिल्कुल प्राकृतिक है और इसे मानवीय हाथों ने अभी तक स्पर्श नहीं किया है। इसमें कीटों की ऐसी प्रजातियों का बसेरा है जो दुनिया में कहीं और देखने को नहीं मिलतीं खासकर चमगादड़ और मकड़ी। इसके अलावा छिपकली, सांप, बिच्छु आदि की भी कई विलुप्त प्राय: प्रजातियां यहां देखने को मिल जाती हैं।
रॉक क्लाइंबिंग
मलेशिया सरकार 150 मीटर ऊंची इन चूने की पहाडिय़ों पर पिछले दस सालों से रॉक क्लाइंबिंग को बढ़ावा दे रही है। बाटू गुफाओं में 160 से अधिक कलाइंबिंग स्थल हैं। इन क्लाइंबिंग प्वांटस की खासियत यह है कि इनमें से अधिकतर पर पकड़ ग्राऊंड लैवल से बनाई जा सकती है। इसके अलावा अफगानिस्तान में बामियान की पहाडिय़ों की कंदराओं में कई सौ साल मानव ने बौद्ध मुर्तियों को स्थापित किया था जो इतिहास का एक हिस्सा बन गई थीं,लेकिन तालिबानियों की कटटरपंथी सोच के चलते उन्हें नष्ट कर दिया गया आज उन पहाडिय़ों पर मूॢतयों से विहीन कंदराएं ही दिखाई देती हैं। किंतु मलेशिया की इन गुफाओं और चूने की पहाडिय़ों में जो आस्था की बयार बह रही है लगता है यह सदियों तक बहती रहेगी। धार्मिक आस्था स्थल के साथ-साथ यह पर्यटन स्थल के रूप में भी विकसित होता जा रहा है जिससे सरकार को करोड़ों का राजस्व प्राप्त होता है। -प्रस्तुति विनसैंट फ्रैंकलिन