` थापर यूनिवर्सिटी पटियाला आर.टी.आई. के दायरे में आती हैः राज्य सूचना आयोग ने दिए आदेश

थापर यूनिवर्सिटी पटियाला आर.टी.आई. के दायरे में आती हैः राज्य सूचना आयोग ने दिए आदेश

THAPAR UNIVERSITY PATIALA FALLS IN AMBIT OF RTI; STATE INFORMATION COMMISSION ORDERS share via Whatsapp

THAPAR UNIVERSITY PATIALA FALLS IN AMBIT OF RTI; STATE INFORMATION COMMISSION ORDERS

इंडिया न्यूज सेंटर,चंडीगढ़: राज्य सूचना आयोग, पंजाब (एस.आई.सी.) ने थापर यूनिवर्सिटी पटियाला को ‘‘सार्वजनिक अथॉरिटी’’ घोषित किया है और अपीलकर्ता को अपेक्षित जानकारी मुहैया करवाने के निर्देश दिए हैं।

इस सम्बन्धी जानकारी देते हुए राज्य सूचना आयोग के प्रवक्ता ने बताया कि आर.टी.आई. एक्टिविस्ट आकाश वर्मा ने सूचना अधिकार एक्ट के अंतर्गत जानकारी माँगी थी परन्तु थापर यूनिवर्सिटी ने जानकारी देने से यह कहकर इनकार कर दिया था कि यूनिवर्सिटी आर.टी.आई. के दायरे में नहीं आती।

 आर.टी.आई. एक्टिविस्ट आकाश वर्मा ने 24 दिसंबर, 2020 को थापर यूनिवर्सिटी द्वारा पास किए गए आदेशों के विरुद्ध अपील दायर करते हुए राज्य सूचना आयोग के पास पहुँच की। बताने योग्य है कि थापर यूनिवर्सिटी ने आर.टी.आई. एप्लीकेशन को यह कहते हुए ख़ारिज कर दिया था कि थापर यूनिवर्सिटी को यू.जी.सी. एक्ट 1956 की धारा 3 के अंतर्गत प्राईवेट यूनिवर्सिटी माना जाता है और यह सार्वजनिक अथॉरिटी नहीं है।

 प्रवक्ता ने बताया कि थापर इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग एंड टैक्रोलॉजी की स्थापना 1955 में उस समय की पैपसू सरकार ने राज्य में तकनीकी शिक्षा को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से अग्रणी थापर चैरिटेबल ट्रस्ट के साथ समझौते के अंतर्गत की थी। समझौते के अंतर्गत संयुक्त चैरिटेबल ट्रस्ट बनाई गई और मोहिनी चैरिटेबल ट्रस्ट और पैपसू सरकार द्वारा इंस्टीट्यूट के लिए 30-30 लाख रुपए दिए गए। 19.09.1955 को पैपसू सरकार ने लैंड ऑफ ऐक्यूजि़शन एक्ट की धारा 4 के अंतर्गत एक नोटीफिकेशन जारी किया, जिसमें यह कहा गया कि संभावित तौर पर 250 एकड़ वाली ज़मीन सार्वजनिक उद्देश्यों के लिए अपेक्षित है। इंस्टीट्यूट की स्थापना के लिए यह ज़मीन पैपसू सरकार द्वारा मुफ़्त में दी गई और राज्य सरकार और यू.जी.सी. ने उक्त संस्था के लिए ग्रांटें दीं।

 

अपील का निपटारा करते हुए राज्य सूचना आयुक्त ने आदेश दिया कि डी.ए.वी. कॉलेज ट्रस्ट एंड मैनेजमेंट सोसायटी (सुपरा) के मामले में माननीय सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के मद्देनजऱ, सर्वोच्च अदालत ने कहा है कि अगर राज्य द्वारा दी गई ज़मीन पर कोई संस्था स्थापित की जाती है तो स्पष्ट तौर पर इसका अर्थ यह होगा कि इसको सरकार द्वारा उचित रूप में फाइनैंस किया गया है और यह सार्वजनिक अथॉरिटी है और आर.टी.आई. एक्ट, 2005 की शर्तों की पालना करने के लिए पाबंद है।

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Source: INDIA NEWS CENTRE

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