क्रांतीवीर उधम सिंह का जन्म पंजाब-प्रांत के ग्राम सुनाम (जनपद - संगरुर) में 26 दिसंबर 1899 को हुआ था। इनके पिता का नाम टहल सिंह था। वर्ष 1919 का जलियांवाला बाग का जघन्य नरसंहार उन्होंने अपनी आंखों से देखा था। उन्होंने देखा था कि कुछ ही क्षणों में जलियांवाला बाग खून में नहा गया और असहाय निहत्थे लोगों पर अंग्रेजी शासन का बर्बर अत्याचार और लाशों का अंबार। उन्होंने इसी दिन इस नरसंहार के नायक जनरल डायर से बदला लेने की प्रतिज्ञा की थी। प्रतिशोध की आग में जलते हुए यह नर-पुंगव दक्षिण-अफ्रीका तथा अमरीका होते हुए वर्ष 1923 में इंग्लैंड पहुंचा। वर्ष 1928 में भगतसिंह के बुलाने पर उन्हें भारत आना पड़ा। 1933 में वह पुन: लंदन पहुंचे। तब तक जनरल डायर मर चुका था, किंतु उसके अपराध पर मोहर लगाने वाला सर माइकल-ओ-डायर तथा लॉर्ड जेटलैंड अभी जीवित था। 13 मार्च 1940 को उन्हें अपने हृदय की धधकती आग को शांत करने का मौका मिला। उस दिन लंदन की एक गोष्ठी में दोनों अपराधी उपस्थित थे। उधमसिंह धीरे-धीरे चुपके से जाकर मंच से कुछ दूरी पर बैठ गए। सर माइकल-ओ-डायर जैसे ही भारत के विरुद्ध उत्तेजक भाषण देने के पश्चात मुड़े, उधमसिंह ने उस पर गोली दाग दी। वह वहीं ढेर हो गया। लॉर्ड जेटलैंड भी बुरी तरह घायल हो गया। सभा में भगदड़ मच गई पर उधम सिंह भागे नहीं। वह दृढ़ता से खड़े रहे और सीना तानकर कहा - माइकल को मैंने मारा है। मुकदमा चलने पर अदालत में अपना बयान देते हुए उन्होंने सपष्ट कहा था- यह काम मैंने किया माइकल असली अपराधी था। उसके साथ ऐसा ही किया जाना चाहिए था। वह मेरे देश की आत्मा को कुचल देना चाहता था। मैंने उसे कुचल दिया। पुरे 21 साल तक मैं बदले की आग में जलता रहा। मुझे खुशी है कि मैंने यह काम पूरा किया। मैं अपने देश के लिए मर रहा हूं। मेरा इससे बड़ा और क्या सम्मान हो सकता है कि मैं मातृभूमि के लिए अपने प्राण दे दूं। इस प्रकार उस मृत्युंजयी बलिदानी ने मातृभूमि के चरणों में हंसते-हंसते अपने प्राणों की भेंट चढ़ा दी। उनका बलिदान हमें देशभक्ति व राष्ट्रीय एकता की भावना की प्रेरणा देता रहेगा।