Warm wishes on Hindu Empire Day
धर्म न्यूज डेस्कः सन् 1674 में ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशी को (आज ही के दिन) शिवाजी का राज्याभिषेक हुआ था, जिसे आनंदनाम संवत् का नाम दिया गया। महाराष्ट्र में पांच हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित रायगढ़ किले में एक भव्य समारोह हुआ था। इसके पश्चात् शिवाजी पूर्णरूप से छत्रपति अर्थात् एक प्रखर हिंदू सम्राट के रूप में स्थापित हुए।
महाराष्ट्र में यह दिन "शिवा राज्यारोहण उत्सव" के रूप में मनाया जाता है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ इसे हिंदू साम्राज्य दिनोत्सव के रूप में मनाता है। इसका कारण स्पष्ट है। एक किशोर के रूप में शिवाजी ने हिंदवी स्वराज स्थापित करने की प्रतिज्ञा ली थी न कि अपना राज्य स्थापित करने की। उन्होंने इस बात की भी घोषणा की थी कि यह ईश्वर की इच्छा है, इसमें सफलता निश्चित है। उन्होंने अपनी शाही मोहर में यह बात अंकित की थी कि शाहजी के पुत्र शिवाजी की यह शुभ राजमुद्रा शुक्ल पक्ष के प्रथम दिवस के चंद्रमा की भांति विकसित होगी और समस्त संसार इसका मंगलगान करेगा।
यहां तक कि राज्याभिषेक के समय भी समारोह का विशिष्ट हिंदू चरित्र साफ उभरकर सामने आया था। तमिलनाडु से एक प्रतिभाशाली किशोर कवि जयराम शिवाजी की काव्य प्रशस्ति गाने के लिए आया तो एक प्रसिद्ध वैदिक विद्वान गंगा भट्ट काशी से चलकर आए। उन्होंने शिवाजी को एक संप्रभु हिंदू राजा के रूप में प्रतिष्ठापित करने के लिए एक नए आध्यात्मिक भाष्य की रचना की। देश भर से सात पवित्र नदियों का जल शिवाजी के मंगल स्नानके लिए लाया गया।
इससे पूर्व जब शिवाजी औरंगजेब से भेंट करने आगरा गए थे तब जाति, भाषा, पांथिक प्रथाओं की परवाह न करते हुए समस्त जनता उनके सम्मान के लिए रास्ते में एकत्र हो गई। अमानवीय मुस्लिम शासन के तहत पिस रही हिंदू जनता ने स्पष्ट रूप से उन्हें एक नई आशा की किरण के रूप में देखा।
शिवाजी को परास्त करने के लिए औरंगजेब के सेनापति के रूप में दक्षिण आए राजस्थान के राजा जयसिंह को उन्होंने एक लंबा पत्र लिखा था। इस पत्र में शिवाजी ने जयसिंह को हिंदुस्थान को मुस्लिम युग से मुक्त करवाने में प्रमुख भूमिका स्वीकार करने की अपील की थी और स्वयं उनके कनिष्ठ सहयोगी के रूप में साथ देने की बात कही थी। पर जयसिंह के ऊपर मुगलों का प्रभाव इस कदर हावी था कि उन्होंने शिवाजी की राष्ट्रभक्ति की अपील को अनसुना कर दिया।
बाद में बुंदेलखंड (अब वर्तमान मध्य प्रदेश में) के राजा छत्रसाल स्वराज के लिए शिवाजी के झंडे तले लड़ने के लिए आए। पर शिवाजी ने उन्हें वापस भेजकर, वहीं एक शक्तिशाली हिंदू शक्ति के निर्माण की सलाह दी, जिससे हिन्दू शक्ति का मुस्लिम प्रभुत्व पर चहुंओर से आक्रमण हो सके।
शिवाजी के उत्तराधिकारियों के रूप में पेशवाओं ने भगवा ध्वज को काबुल तक फहरा दिया और अंतत: मुगल सत्ता, जो कि अनेक शताब्दियों तक चुनौतीहीन रही थी, को पूर्ण रूप से विनष्ट कर दिया। उन्होंने छत्रपति शिवाजी के जीवन-लक्ष्य को सही रूप में समझा था। एक बार स्वामी विवेकानंद जी ने कहा था कि श्री राम और श्री कृष्ण के समान शिवाजी धर्म की स्थापना के लिए जन्म लेने वाले एक आदर्श हिंदू राजा थे। (माननीय हो. वे. शेषाद्री जी)
जय शिवाजी....! जय भवानी....!