Two Day National Workshop on Agro-Biomass for Thermal Power Plant Applications Organized
भारत में लगभग 750 मिलियन टन की विशाल बायोमास उपलब्धता क्षमता है, जिसमें से लगभग 228 मिलियन टन अधिशेष रह जाता है
विशिष्ट अतिथि-श्री वी. चंद्रशेखरन, महाप्रबंधक, एनटीपीसी द्वारा मां सरस्वती की प्रार्थना एवं दीप प्रज्ज्वलन के साथ किया गया
सरदार स्वर्ण सिंह राष्ट्रीय जैव-ऊर्जा संस्थान (एसएसएस-नीबे), कपूरथला, एनटीपीसी अधिकारियों के लिए 4 और 5 जुलाई को “थर्मल पावर प्लांट अनुप्रयोगों के लिए कृषि-बायोमास नमूनाकरण और लक्षण वर्णन तकनीकों पर विशेष व्यावहारिक प्रशिक्षण सह कार्यशाला” पर दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन
इंडिया न्यूज सेंटर,कपूरथलाः सरदार स्वर्ण सिंह राष्ट्रीय जैव-ऊर्जा संस्थान (एसएसएस-नीबे), कपूरथला, एनटीपीसी अधिकारियों के लिए 4 और 5 जुलाई को “थर्मल पावर प्लांट अनुप्रयोगों के लिए कृषि-बायोमास नमूनाकरण और लक्षण वर्णन तकनीकों पर विशेष व्यावहारिक प्रशिक्षण सह कार्यशाला” पर दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन कर रहा है।
इस कार्यशाला का उद्घाटन 4 जुलाई को डॉ० जी० श्रीधर महानिदेशक, एसएसएस-नीबे, मुख्य अतिथि- सतीश उपाध्याय, मिशन निदेशक, समर्थ मिशन, विशिष्ट अतिथि-श्री वी. चंद्रशेखरन, महाप्रबंधक, एनटीपीसी द्वारा मां सरस्वती की प्रार्थना एवं दीप प्रज्ज्वलन के साथ किया गया।
डॉ० श्रीधर ने इस कार्यशाला में फसल अवशेषों की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए कहा कि फसल अवशेषों की प्रचुर उपलब्धता के कारण भारतीय संदर्भ में बायोमास आधारित बिजली उत्पादन की प्रासंगिकता और महत्व बहुत अधिक है।
डॉ० श्रीधर ने यह भी बताया कि एसएसएस-नीबे बायोमास आधारित बिजली उत्पादन गतिविधियों का समर्थन करने के लिए किस प्रकार का शोध कार्य कर रहा है, साथ ही उन्होंने तापीय विद्युत संयंत्रों को वर्तमान में बायोमास सह-दहन में आने वाली कुछ चुनौतियों के लिए आवश्यकता-आधारित समाधानों की भी रूपरेखा तैयार की है।
सतीश उपाध्याय ने अपने संबोधन में समर्थ मिशन के लक्ष्यों और उद्देश्यों पर प्रकाश डाला और थर्मल पावर प्लांटों में फसल अवशेष बायोमास के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए मिशन द्वारा किए जा रहे कार्यों को रेखांकित किया। उन्होंने सभागार में उपस्थित प्रतिभागियों को कोयले के साथ सह-दहन के लिए बायोमास उपयोग की वर्तमान सफलता और देश में स्थिरता और नवाचार के लिए इसकी भूमिका के बारे में अवगत कराया।
उन्होंने मिशन की सफलता के लिए अनुसंधान एवं विकास तथा मानकीकरण की भूमिका पर प्रकाश डाला। श्री चंद्रशेखरन ने अपने संबोधन में परीक्षण पद्धति के महत्व और मापदंडों के परीक्षण में एकरूपता लाने पर बल दिया। दोनों अतिथियों ने बायोमास क्षेत्र के लिए उच्च गुणवत्ता वाले अनुसंधान और विकास में नीबे की भूमिका को स्वीकार किया और इस बात पर प्रकाश डाला कि यह व्यावहारिक कार्यशाला एनटीपीसी अधिकारियों के लिए बायोमास नमूनाकरण और उसके लक्षण वर्णन में कैसे सहायक होगी। एसएसएस-नीबे के वैज्ञानिक-सी डॉ. कुंवर पाल के धन्यवाद ज्ञापन के साथ प्रथम सत्र की समाप्ति हुई।
भारत में लगभग 750 मिलियन टन की विशाल बायोमास उपलब्धता क्षमता है, जिसमें से लगभग 228 मिलियन टन अधिशेष रह जाता है। भारत कोयले के विकल्प के रूप में या सह-दहन अथवा पूर्ण दहन के माध्यम से बिजली उत्पादन के लिए इस बायोमास का उपयोग करने की भारी क्षमता रखता है। भारत का अनुमान है कि देश में प्रतिवर्ष 28 गीगावाट की बायोमास आधारित बिजली उत्पादन क्षमता है।
इस विशेष रूप से आयोजित कार्यशाला का उद्देश्य एनटीपीसी अधिकारियों को कृषि-बायोमास नमूनाकरण और लक्षण वर्णन तकनीकों पर प्रशिक्षित करना है ताकि उन्हें देश में समर्थ मिशन के 5% और उससे अधिक के सह-दहन लक्ष्यों को प्राप्त करने के जनादेश को सफलतापूर्वक पूरा करने में मदद मिल सके। कार्यशाला में विभिन्न मानक प्रोटोकॉल, बायोमास पेलेट पहचान/अनुकूलन तकनीक, ताप विद्युत संयंत्रों में कृषि-अपशिष्ट के प्रवाह गुणों और कोयले और बायोमास के सह-दहन विशेषताओं पर आधारित बायोमास लक्षण वर्णन पर तकनीकी सिद्धांत सत्र होंगे। इस कार्यशाला में महत्त्वपूर्ण बायोमास परीक्षण मापदंडों जैसे नमूनाकरण, अंतिम विश्लेषण, समीपस्थ विश्लेषण, ऊष्मीय मान, राख फ्यूजनशीलता आदि पर प्रयोगात्मक प्रयोगशाला सत्र भी होंगे।
इस कार्यशाला में देश भर से एनटीपीसी के अधिकारियों की भागीदारी देखी गई। इस कार्यशाला की विशेष उपलब्धि यह है कि इसमें आईआईटी-आईएसएम धनबाद, थापर यूनिवर्सिटी आदि के सम्मानित संकाय सदस्य वक्ताओं के रूप में शामिल होंगे। कार्यशाला के सफल समापन पर सभी प्रतिभागियों को प्रमाण-पत्र वितरित किये जायेंगे।