Retired Colonel case: Handcuffing has been declared inhuman since 1978
लोगों को सही तरह से इसकानून की जानकारी तक नही है
हथकड़ी लगाकर ले जाने पर सीधे सुप्रीम कोर्ट की अवमानना माना जाता है
अगर अपराधी खतरनाक हो और यह अंदेशा हो कि अपराधी भाग सकता है तो एेसी परिस्थिति में अदालत से अनुमति लेने का प्रावधान है
नवीन गोयल,मुजफ्फरनगरः रिटायर्ड कर्नल वीरेंद्र प्रताप सिंह चौहान को हथकड़ी लगाकर पेश करने पर कोर्ट से फटकार लगाने की घटना का यह मुद्दा सोशल साइट और देश में चर्चा का विषय बना हुआ है। कानूनी जानकारों की मानें तो स्वतंत्र भारत में हथकड़ी लगाने का कोई नियम नहीं है। 1978 में सुप्रीम कोर्ट ने अंग्रेजों के जमाने से चली आ रही लोगों को अपमानित करने वाली इस प्रथा पर रोक लगा दी थी। हथकड़ी लगाने की कार्रवाई अनुच्छेद 19 और 21 का उल्लंघन घोषित कर दी गई है। कानूनी जानकारों का कहना है कि अंग्रेजी शासनकाल में किसी आरोप में पकड़े गए व्यक्ति को उसके घर या गिरफ्तारी के स्थान से थाने आदि तक हथकड़ी लगाकर ले जाया जाता था। इसका उद्देश्य पकड़े गए व्यक्ति की गरिमा को ठेस पहुंचाना होता था। 1978 में सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति कृष्णा अय्यर ने सुनील बत्रा बनाम दिल्ली प्रशासन केस में इस प्रथा को अमानवीय घोषित किया था। उन्होंने प्रतिपादित किया था कि हथकड़ी पहनाने से व्यक्ति की मानवीय गरिमा, सम्मान और सार्वजनिक प्रतिष्ठा नष्ट हो जाती है। इसके बाद 1980 में प्रेमशंकर शुक्ला बनाम दिल्ली केस में सुप्रीम कोर्ट ने आदेशात्मक दिशा-निर्देश जारी करते हुए कहा था कि गिरफ्तार व्यक्ति को हथकड़ी पहनाना अनुच्छेद 19 एवं 21 का उल्लंघन है। इसी कारण हथकड़ी लगाने को सुप्रीम कोर्ट की अवमानना माना जाता है, लेकिन अब तक ऐसे मामले में किसी पर अवमानना में कार्रवाई का मामला सामने नहीं आया है।
क्या कहते है अधिवक्ता
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट के वरिष्ठ एडवोकेट राजेश अरोड़ा ने बताया कि 1978 में सुप्रीम कोर्ट ने अंग्रेजी शासन काल से चली आ रही हथकड़ी लगाने की प्रथा पर इसे अमानवीय व अपमानित करने वाली बताते हुए रोक लगा दी थी। हथकड़ी लगाना सुप्रीम कोर्ट की अवमानना की श्रेणी में आता है। हालांकि, किसी बड़े अपराधी जिसके हिरासत से भागने की संभावना हो, उसे अदालत से आदेश लेकर हथकड़ी लगाई जा सकती है।