State Government will give full respect to the warships and soldiers- Captain Amarinder Singh
इंडिया न्यूज सेंटर,चंडीगढ़: पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कहा कि उनकी सरकार रक्षा सेनाओं में सेवा निभा रहे व सेवानिवृत सैनिकों को उचित मान-सम्मान देने के लिए पूरी तरह वचनबद्ध है और उनको उम्मीद है कि अन्य सरकारें भी यही रास्ता अपनाऐगी। आज यहां लेक क्लब में मिलट्री साहित्यक समागम के दौरान ‘फ़ौजी इतिहासकारों और लेखकों के साथ विचार विमर्श सैशन’ दौरान वी सांघवी द्वारा इस संबंधी पूछे प्रश्न के उत्तर में कैप्टन अमरिंदर सिंह जो ख़ुद पूर्व सैनिक हैं, ने कहा कि उनकी सरकार ने रक्षा सेवाओं और सेवा निवृत सैनिकों को सिविल प्रशासन द्वारा मान-सम्मान देने को यकीनी बनाने के लिए कई कदम उठाए गए हैं। नौजवानों की सेना में भर्ती होने की कम हो रहे रूझान संबंधी एक सवाल के जवाब में मुख्यमंत्री ने इस सुझाव को रद्द कर दिया कि यह रक्षा बलों में शामिल होने वाले सैनिकों की गुणवत्ता में गिरावट के कारण है। उन्होंने कहा कि भारतीय सेना की गुणवत्ता का स्वरूप बरकरार रहा है परंतु समस्या यह है कि रक्षा सेनाओं के राजनैतिक ढांचे और सिविल प्रशासन से पूरा मान -सम्मान नहीं मिल रहा। मुख्य मंत्री ने दुख व्यक्त किया कि जंगी फौजियों और पूर्व सैनिकों को यह शिकायत रहती है कि उनको अपनी समस्याओं संबंधी सरकार से कोई सहयोग नहीं मिलता। कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कहा कि उनकी सरकार द्वारा प्रशासन को निर्देश दिए गए हैं कि जब भी कोई जंगी सैनिक और सेवा निभा रहा सैनिक या अन्य रक्षा सैनिक उनके कार्यालय आता है तो उनको परेशान न किया जाये। मुख्यमंत्री ने उम्मीद ज़ाहिर की कि केंद्र और राज्य सरकारों को इस संबंधी पंजाब द्वारा उठाये गये कदमों को अपनाना चाहिए। कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कहा कि एक सैनिक के लिए ‘इज्जत ’ सबसे अधिक अहमीयत रखती है और यह इज्जत देना सरकार का कत्र्तव्य है। कैप्टन अमरिंदर सिंह ने एक घटना सांझा करते हुये बताया कि एक बार एक जिले के सीनियर पुलिस अधिकारी ने ब्रिगेडियर रैंक के सेवानिवृत फ़ौजी अधिकारी को लंबे समय तक अपने कार्यालय के बाहर खड़ा करके उसका निरादर किया और वह उस समय मुख्यमंत्री थे और उन्होंने इस पुलिस अधिकारी की बदली कर दी। उन्होंने ऐसे अधिकारियों के मान-सम्मान की रक्षा की ज़रूरत पर बल देते हुये कहा कि सेना हमारे वतन की सुरक्षा के लिए अपनी जान जोखिम में डालती है। एक सेना के अधिकारी द्वारा पूछे सवाल के जवाब में मुख्यमंत्री ने खुलासा किया कि वह 1971 के युद्ध पर एक किताब लिखेंगे और उसके बाद श्रीलंका में भारतीय फ़ौज की भूमिका पर भी एक किताब लिखेंगे। इस सैशन में थोमस फ्रेजर, एलन जैफरेज़, लैफ्टिनैंट जनरल टी.एस. शेरगिल्ल और एड हेयनस ने हिस्सा लिया जहां दुनिया भर में युद्ध और शांति से संबंधित मुद्दों को छूआ गया। इस अवसर पर घुसपैठ जो गत् वर्षो के दौरान सुरक्षा के लिए बड़ी चुनौती बनी हुई है, संबंधी भी चर्चा हुई। इससे पहले ‘पहली कश्मीर जंग 1947 -48’ पर चर्चा के दौरान मुख्यमंत्री ने कहा कि 1965 में भारत ने कोई सैन्य या क्षेत्रीय लाभ नहीं लिया। उन्होंने बताया कि युद्ध के दौरान स्थिति बहुत खराब थी और यहां तक कि गोला-बारूद भी ख़त्म हो गया परंतु युद्ध अभी एक सप्ताह और चलना था। उन्होंने कहा कि ‘‘हमें लडऩे के लिए पत्थरों का प्रयोग करना पडऩा था।’’कैप्टन अमरिंदर सिंह ने सैनिकों की बहादुरी संबंधी कई घटनाओं का वर्णन किया जिनको कोई तैयारी किये बिना ही बहुत कम समय में युद्ध के मैदान में जाने का आदेश दिया जाता था। उन्होंने भारतीय रक्षा सेनाएं के शौर्य की सराहना की जो अपनी मातृभूमि पर जान न्यौछावर करने से पहले दो पल भी नहीं सोचते। विचार-विमर्श के दौरान कैप्टन अमरिंदर सिंह और द ट्रिब्युून के मुख्य संपादक हरीश खरे के साथ लैफ्टिनैंट जनरल ए. मुखर्जी, ब्रिगेडियर एम.एस. गिल, ब्रिगेडियर आई.एस. गाख़ल और मेजर जनरल शिवदेव सिंह भी शामिल थे।