Congress's command in Rahul's 'hand', party president elected, will take over December 16
इंडिया न्यूज सेंटर,नई दिल्लीः कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी को कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुन लिया गया है। 11 दिसंबर की दोपहर पार्टी ने उनके निर्वाचन की घोषणा की है। गौरतलब है कि राहुल का निर्वाचन निर्विरोध हुआ है। गुजरात में चल रहे विधानसभा चुनावों के मद्देनजर राहुल गांधी 16 दिसंबर को पार्टी की कमान संभालेंगे। जिक्रयोग है कि अब तक उनकी मां सोनिया गांधी पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। पिछले कई वर्षों से पार्टी के भीतर से उन्हें अध्यक्ष बनाए जाने की मांग उठती आ रही थी। लेकिन हर बार किसी न किसी वजह से उनकी ताजपोशी टलती रही।
गौरतलब है कि गुजरात में हो रहे विधानसभा चुनावों के प्रचार की कमान खुद राहुल गांधी ने संभाल रखी है। वो पूरे राज्य में दौरे और रैलियां कर रहे हैं। उन्होंने पाटीदार आंदोलन के नेता हार्दिक पटेल और अल्पेश ठाकोर का समर्थन भी हासिल कर लिया है। राहुल गांधी को जनवरी 2013 में कांग्रेस का उपाध्यक्ष बनाया गया था।जिसके बाद से वह पार्टी में दूसरे सबसे बड़े नेता के रूप में काम कर रहे थे। माना जा रहा है कि सोनिया गांधी कांग्रेस संसदीय दल का प्रतिनिधित्व करती रहेंगी। राहुल के अध्यक्ष बनने की घोषणा पार्टी के प्रवक्ता मल्लापल्ली रामचंद्रन ने की। जिसके बाद पार्टी के बड़े नेताओं ने राहुल को बधाई देना शुरू कर दिया। कांग्रेस में जश्न का माहौल बन गया है। गुलाम नबी आजाद ने कहा है राहुल गांधी एक कद्दावर नेता हैं और उनकी वजह से ही प्रधानमंत्री और उनके सभी मंत्री गुजरात में डेरा डाले हुए हैं। देश की सबसे पुरानी और मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस में 'पीढ़ियों के बदलाव' की प्रक्रिया शुरू हो गई है। इससे पहले भी मां सोनिया गांधी के अस्वस्थ रहने के कारण पार्टी का अधिकतर काम राहुल ही देख रहे थे लेकिन उनके पास वो सारे अधिकार नहीं थे जिससे वह पार्टी को अपने मुताबिक चला सकें। इसके चलते पार्टी में सत्ता के लगभग दो केंद्र एक साथ चल रहे थे, पार्टी में भी नेताओं की दो कतारें थी। एक वो जो अध्यक्ष सोनिया गांधी के प्रति वफादार थी (अधिकतर पुराने नेता और पदाधिकारी) और दूसरी वो जो जल्दी से जल्दी राहुल को पार्टी की बागडोर सौंपने की वकालत कर रहे थे। ऐसे में अब उन्हें सत्ता की एक चमकीली विरासत के साथ साथ चुनौतियां का बड़ा पहाड़ भी सामने मिलने वाला है जिससे पार करना उनके लिए आसान नहीं होगा। आइए डालते हैं ऐसी ही कुछ चुनौतियों पर एक निगाह-
पार्टी में खुद की स्वीकार्यता स्थापित करना
अध्यक्ष चुने जाने के बाद राहुल गांधी के सामने सबसे बड़ी चुनौती है खुद को पार्टी के सर्वमान्य नेता के तौर पर स्थापित करना, जैसी स्वीकार्यता उनकी मां सोनिया गांधी और दादी इंदिरा गांधी की रही है। उनके अलावा भी कई छोटे बड़े नेता गाहे बगाहे राहुल गांधी का विरोध करते रहे हैं, ऐसे में उनके सामने सबसे मुश्किल काम पार्टी में खुद को ऐसे नेता के तौर पर स्थापित करने का है जिसके पीछे पूरी पार्टी खड़ी हो सके।
पार्टी को एकजुट कर कार्यकर्ताओं के आत्मविश्वास को लौटाना
लगातार चुनावों में हार के कारण कांग्रेस पार्टी और उसके कार्यकर्ताओं का आत्मविश्वास बिल्कुल निचले पायदान पर पहुंच चुका है। ऐसे में जरूरत है ऐसे नेता की जो उनका खोया हुआ आत्मविश्वास लौटा सके। काडर के हिसाब से आज भी कांग्रेस देश की सबसे बड़ी पार्टी है और देश में उसके लाखों कार्यकर्ता हैं। लेकिन पार्टी की लगातार बुरी गत के कारण ज्यादातर कार्यकर्ता निष्क्रिय हो चुके हैं, ऐसे में जरूरत है उन सब को सक्रिय करके पार्टी की जड़ें मजबूत करने की। जिससे आगामी चुनावों के लिए कांग्रेस सत्तारूढ़ भाजपा को टक्कर दे सके।
खुद को विपक्ष के सबसे बड़े नेता के तौर पर तैयार करना
राहुल के सामने एक बड़ी चुनौती लगभग शून्य हो चुके विपक्ष और उसके एक सर्वमान्य नेता के तौर पर खुद को स्थापित करने की भी है। भाजपा के लगातार सभी राज्यों में जीत का एक बड़ा कारण कमजोर पड़ता विपक्ष भी है, जिसके कारण भाजपा को कहीं कोई बड़ी चुनौती नहीं मिल पाती। ऐसे में राहुल अगर विपक्ष के तौर पर कांग्रेस पार्टी और विपक्ष के नेता के तौर पर खुद को मजबूती से स्थापित कर पाते हैं तो इसका बड़ा अंतर देखने को मिलेगा। वर्तमान में विपक्ष में कोई इस कद का नेता नहीं है जो प्रधानमंत्री मोदी या भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के मुकाबले में खड़ा हो सके, अगर राहुल गांधी यह कारनामा कर पाते हैं तो इसका सीधा लाभ उनकी पार्टी को मिलेगा। इसके अलावा भाजपा विरोधी पार्टियों को एक मंच पर लाकर उन्हें भाजपा के खिलाफ लड़ने के लिए तैयार करना भी राहुल के लिए मुश्किल टास्क होगा। एक दौर में कांग्रेस पार्टी दलित और मुस्लिम वोट बैंक के अलावा ओबीसी वोटरों की पसंदीदा हुआ करती थी, लेकिन पार्टी नेताओं की लगातार अनदेखी के कारण पार्टी का यह जनाधार धीरे धीरे खिसकता चला गया। नतीजतन कांग्रेस को एक के बाद एक लगातार हार से सामना करना पड़ा। कभी मुस्लिम और दलित कांग्रेस का पुख्ता वोट बैंक होते थे, लेकिन एक दौर में आकर पार्टी ने उन्हें अपनी बपौती मान लिया जिसका नतीजा से हुआ कि मुस्लिम वोट बैंक को सपा मुखिया मुलायम सिंह ने अपनी ओर मोड़ लिया जबकि दलित वोट बैंक को मायावती की बसपा ले उड़ी। ऐसे में राहुल के सामने बड़ी चुनौती अपने इस प्रमुख वोट बैंक को वापिस लौटाने की भी है। बिना मुस्लिम और दलितों के जुड़े कांग्रेस पार्टी के उद्भाव की संभावना कम ही है।
2019 के आम चुनावों के लिए पार्टी को तैयार करना
अध्यक्ष पद संभालते ही राहुल गांधी के सामने जो सबसे बड़ा लक्ष्य होगा वो है 2019 के लोकसभा चुनाव। देश के वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य के अनुसार फिलहाल मोदी-शाह की जोड़ी को टक्कर देने वाला कोई नजर नहीं आ रहा। ऐसे में लोकप्रियता के रथ पर सवार प्रधानमंत्री मोदी को साल अगले लोकसभा चुनावों में कोई चुनौती मिलने की संभावना कम ही है। ऐसे में कांग्रेस पार्टी का अध्यक्ष होने के नाते राहुल गांधी के सामने बड़ी चुनौती 2019 के लोकसभा चुनावों में पार्टी के अच्छे प्रदर्शन की है। बीते लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पचास से भी कम सीटों पर सिमट गई थी, ऐसे में जल्द से जल्द राहुल को पार्टी को मजबूत करके अगले आम चुनावों के लिए तैयार करना होगा, जिससे पार्टी अपनी खोई प्रतिष्ठा वापस पा सके।