` SC-ST Act विवाद में दलित संगठनों की मांग, यहां से शुरू हुआ था मामला

SC-ST Act विवाद में दलित संगठनों की मांग, यहां से शुरू हुआ था मामला

Know What is the demand of Dalit organizations in the SC / ST Act controversy, the matter started here share via Whatsapp


Know What is the demand of Dalit organizations in the SC / ST Act controversy, the matter started here


नेशनल डेस्कः
सुप्रीम कोर्ट द्वारा एससी-एसटी एक्ट में बदलाव के बाद देश भर में प्रदर्शन जारी है। बिहार, पंजाब, ओडिशा समेत कई राज्यों में भारत बंद का व्यापक असर देखने को मिल रहा है।
यहां से शुरू हुआ था मामला

यह मामला 2009 में महाराष्ट्र के सरकारी फार्मेसी कॉलेज में एक दलित कर्मचारी की तरफ से प्रथम श्रेणी के दो अधिकारियों के खिलाफ कानूनी धाराओं के तहत शिकायत दर्ज कराने का है। डीएसपी स्तर के पुलिस अधिकारी ने मामले की जांच की और चार्जशीट दायर करने के लिए अधिकारियों से लिखित निर्देश मांगा। संस्थान के प्रभारी डॉ सुभाष काशीनाथ महाजन ने लिखित में निर्देश नहीं दिए। इसके बाद दलित कर्मचारी ने सुभाष महाजन के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई। सुभाष महाजन ने हाईकोर्ट में उस एफआईआर को रद्द करने की मांग की, जिसे हाईकोर्ट ने ठुकरा दिया। महाजन ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। इस याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने महाजन के खिलाफ एफआईआर हटाने के निर्देश दिए थे। और एससी एसटी एक्ट के तहत तत्काल गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी। इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे मामलों में अग्रिम जमानत को भी मंजूरी दी थी।  

क्या है फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि एससी-एसटी एक्ट में तत्काल गिरफ्तारी नहीं की जाए। कोर्ट के अनुसार एक्ट के तहत दर्ज होने वाले मामलों में अग्रिम जमानत को मंजूरी दी जाए। उच्चतम न्यायलय ने कहा था कि एससी एसटी एक्ट के अंतर्गत मामलों में तुरंत गिरफ्तारी के बजाय पुलिस को 7 दिनों तक जांच करनी होगी और उस जांच के आधार पर एक्शन लेगी। इसके अलावा सरकारी अधिकारी की गिरफ्तारी उच्च अधिकारी (अपॉइंटिंग अथॉरिटी के स्तर) की मंजूरी के बिना नहीं हो सकेगी। यदि गैर सरकारी कर्मी को गिरफ्तार करना है तो एसएसपी की मंजूरी लेना अनिवार्य होगा।   
दलित संगठनों की मांग

देश के विभिन्न हिस्सों में प्रदर्शन कर रहे दलित संगठनों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से दलितों और आदिवासियों के खिलाफ अत्याचार बढ़ जाएगा। 1989 के अनुसूचित जाति जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम का हवाला देते हुए दलित संगठनों ने कहा कि यदि अग्रिम जमानत मिल जाएगी तो अपराधियों के बचने की संभावनाएं बढ़ जाएंगी। कोर्ट के इस फैसले से जातिगत भेदभाव एक बार फिर से बढ़ जाएगा। 

राजनीतिक दलों की राय

एनडीए के दलित वर्ग के जनप्रतिनिधियों समेत विपक्ष दलों ने सरकार ने पुर्नविचार याचिका दाखिल करने की मांग की है। 

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Source: INDIA NEWS CENTRE

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